- दैवतानि प्रसादमं हि भक्त्या कुर्वान्ति।[1]
देवता भक्ति से प्रसन्न होकर कृपा करते हैं।
- इमं च लोकं शोचंतमनुशोचन्ति देवता:।[2]
यह लोक शोकग्रस्त हो तो देवता भी शोक करते हैं।
- पञ्चेंद्रियेषु भूतेषु सर्वं वसति दैवतम्।[3]
पाँच इंद्रिय वाले प्राणियों मे सभी देवता रहते हैं।
- यदन्ना हि नरा राजंस्तदन्नास्त्स्य देवता:।[4]
व्यक्ति जिस अन्न को खाता है उसके देवता भी वही अन्न खाते है।
- कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नाति देवता:।[5]
(घर में) मुर्गे और कुत्ते के होने पर देवता हवि (भोग या नैवेद्य) नहीं खाते
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 150.24
- ↑ वनपर्व महाभारत 157.17
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 262.40
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 66.61
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 127.16
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