सरलता (महाभारत संदर्भ)

  • आर्जव वर्तमानस्य ब्राह्मण्यमभिजायते।[1]

सरलता से जीने वाला ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जाता है।

  • आर्जवं समचित्तता।[2]

सभी के प्रति समान होना सरलता है।

  • आर्जवं सर्वकार्येषु श्रेयेथा:।[3]

सभी कार्य सरलता से करो।

  • आर्जवं ब्रह्मण: पदम्।[4]

सरलता ब्रह्म का पद (मुक्ति) है।

  • असंशयं विनीतात्मा स वै स्वर्गे महीयते।[5]

विन्रम (सरल) व्यक्ति निश्चय ही स्वर्ग में सम्मान पाता है।

  • आर्जवं धर्ममित्याहु:।[6]

सरलता को धर्म कहते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 212.12
  2. वनपर्व महाभारत 313.90
  3. शान्तिपर्व महाभारत 56.20
  4. शांतिपर्व महाभारत 79.21
  5. अनुशासनपर्व महाभारत 75.34
  6. अनुशासनपर्व महाभारत 142.30

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