- येन येनाचरेद् धर्म तस्मिन् गर्हा न विद्यते।[1]
जिस जिस उपाय से धर्म का आचरण हो उसमें कुछ अनुचित नहीं।
- न व्याजेन चरेद् धर्मम्।[2]
धर्म का आचरण करने में बहाने बनायें।
- यावज्जीवमवेक्षस्व वेदधर्मान्।[3]
आजीवन वेद में बताये गये धर्मों का पालन करो।
- धर्मेऽप्रमादं कुरुत्।[4]
धर्म का पालन करने में सदा सावधान रहो।
- सतां धर्मेण वर्तेत।[5]
सज्जनों के धर्म का पालन करे।
- धर्म रक्षेच्च मत्सरात्।[6]
धर्म को जलन से बचाकर रखो। (किसी से जलने से धर्म नष्ट होता है)
- सत्येन रक्ष्यते धर्म:।[7]
सत्य से धर्म की रक्षा होती है।
- अर्थसिद्धिं परामिच्छन् धर्ममेवादितश्चरेत्।[8]
अर्थ की पूर्ण सिद्धि चाहने वाला आरम्भ से ही धर्म का पालन करे।
- कामार्थौ लिप्समानस्तु धर्ममेवादितश्चरेत्।[9]
काम और अर्थ का इच्छुक आदि से धर्म का पालन करे।
- पुराणं धर्ममाचार।[10]
प्राचीन धर्म का पालन करो।
- दभ्यनार्थ च लोकस्य धर्मिर्ष्ठामाचरेत् क्रियाम्।[11]
लोग धार्मिक माने इसके लिये भी धार्मिक कर्म करने चाहिये।
- चरेद् धर्मानकटुक:।[12]
धर्म का आचरण करें और नीरस भी न बनें।
- जानता विहितं धर्म न कार्यो धर्मसंकर:।[13]
शास्त्रविहित धर्म को जानते हुये धर्मसंकर नहीं करना चाहिये।
- धर्म समाचरेत् पूर्वं ततोऽर्थं धर्मसन्युतम्।[14]
पहले धर्म का पालन करना चाहिये फिर धर्मपूर्वक धन कमाना चाहिये।
- एक एव चरेद्धर्म नास्ति धर्मे सहायता।[15]
अकेले ही धर्म करना चाहिये, धर्म में किसी की सहायता नहीं होती।
- धर्मे प्रवर्तेथा: सर्वावस्थम्।[16]
सभी अवस्थाओं मे धर्म का आचरण करो।
- ब्राह्मो मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थौ चानुचिंतयेत्।[17]
रात के अंतिम पहर में जागकर धर्म और अर्थ के विषय में चिन्तित करे।
- न धर्मध्वजिको भवेत्।[18]
धर्मध्वजिक न बनें। धर्मध्वजिक= ध्वज धर्म का उठाये और करे अधर्म
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 154.15
- ↑ आदिपर्व महाभारत 212.34
- ↑ वनपर्व महाभारत 52.33
- ↑ वनपर्व महाभारत 120.29
- ↑ वनपर्व महाभारत 209.44
- ↑ वनपर्व महाभारत 213.29
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 34.39
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 37.48
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 124.37
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 15.52
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 58.20
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 70.3
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 141.60
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 167.27
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 193.32
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 273.24
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.16
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 162.61
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