विविध (महाभारत संदर्भ)

  • सुबद्धस्यापि भारस्य पूर्वबन्ध: श्र्लथायते।[1]

भार दूसरी बार बाँधें तो पहला बंधन दृढ हो तो भी ढीला हो जाता है।

  • आयत्यां च तदात्वे च य: पश्यति।[2]

जो वर्तमान और भविष्य दोनों को देखता है वही समुचित देखता है

  • शीतोष्णयोर्मध्ये भवेन्नोष्णं न शीतता।[3]

शीत और उष्ण के मध्य में एक बिंदु है जहाँ न शीत होता है न उष्ण

  • कामकार: सखीनां हि सोपहासं प्रभाषितम्।[4]

सखियों में आपस मे हास-परिहास की बातें हो ही जाया करती हैं।

  • सम्प्राप्तं बहु मंतव्यम्।[5]

जो मिल जाये उसे बहुत मानना चाहिये।

  • न त्वेय मंये पुरुषस्य राजन्ननागतं ज्ञायते यद् भविष्यम्।[6]

राजन्! लगता नहीं कि मनुष्य का भविष्य पहले ही जाना जा सकता है।

  • यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग् भवति पुरुष:।[7]

मनुष्य जैसा होना चाहता है वैसा ही हो जाता है।

  • यत् किंचिन्मन्यसेऽस्तीति सर्वं नास्ति विद्धि तत्।[8]

जिस किसी वस्तु को मानते हो कि यह है, उसे मानलो कि वह है ही नहीं

  • ये सुगंधीनि सेवंते तथागंधा भवंति ते।[9]

जो सुगंधित पदार्थों का सेवन करते हैं उनसे वैसी ही सुगंध आती है।

  • सर्वे तत्र गमिष्यामो यत एवागता वयम्।[10]

हम सब वहीं जायेंगे जहाँ से आये हैं।

  • असम्यग्दर्शनैर्दु:खमनंतं नोपशाम्यति।[11]

मिथ्याज्ञान से अनंत दु:ख मिलता है वह कभी शांत नहीं होता है।

  • प्रभवश्च प्रभावश्च नात्मसंस्थ: कदाचन।[12]

प्रभुता और प्रभाव कभी अपने अधीन नहीं होता।

  • नैवांतं कारणस्येयाद् यद्यपि स्यान्मोनोजव:।[13]

मन की गति से चलने वाला भी संसार के कारण का अंत नहीं पा सकता

  • सर्वरसैस्तृप्तो नाभिनंदति किंचन।[14]

सभी रसों से तृप्त मनुष्य किसी रस का आदर नहीं करता।

  • विरक्तं शोध्यते वस्त्रं न तु कृष्णोपसंहितम्।[15]

मलिन वस्त्र धोने से स्वच्छ हो जाता है परंतु अत्यंत मलिन हो तो नहीं

  • वदंति कारणै: श्रेष्ठयं स्वपक्षोद्भावनाय वै।[16]

अपने पक्ष की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये लोग हेतु प्रस्तुत करते हैं।

  • अमृतं मनस: प्रीतिं सद्यस्तृप्तिं ददाति च।[17]

अमृत तुरंत मन को प्रसन्नता और तृप्ति देता है।

  • छिन्नमूलो ह्यधिष्ठाने सर्वे तज्जीविनो हता:।[18]

मूल आधार नष्ट होते ही उसका आश्रय लेने वाले सभी नष्ट हो जाते हैं।

  • भिन्ने हि भाजते तात दिशो गच्छति तद्गतम्।[19]

तात! बर्तन ही टूट जायेगा तो उसमें रखी वस्तु बिखर ही जायेगी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 220.17
  2. वनपर्व महाभारत 36.2
  3. वनपर्व महाभारत180.28
  4. वनपर्व महाभारत 233.61
  5. वनपर्व महाभारत 261.1
  6. उद्योगपर्व महाभारत 24.7
  7. उद्योगपर्व महाभारत 36.13
  8. शांतिपर्व महाभारत 104.13
  9. शांतिपर्व महाभारत 152.25
  10. शांतिपर्व महाभारत 174.11
  11. शांतिपर्व महाभारत 219.14
  12. शांतिपर्व महाभारत 224.27
  13. शांतिपर्व महाभारत 239.28
  14. शांतिपर्व महाभारत 263.21
  15. शांतिपर्व महाभारत 291.10
  16. शांतिपर्व महाभारत 300.2
  17. अनुशासनपर्व महाभारत 98.18
  18. आदिपर्व महाभारत 138.17
  19. शल्यपर्व महाभारत 4.42

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