मृदु (महाभारत संदर्भ)

मृदु = कोमल

  • मृदु: स्यान्नापकारिषु।[1]

कोमल तो रहें परंतु अपकार करने वाले के लिये नहीं।

  • तीक्ष्णकाले भवेत् तीक्ष्णो मृदुकाले मृदुर्भवेत्।[2]

समय को देखकर कठोर या कोमल व्यवहार करना चाहिये।

  • नासाध्यं मृदुना किंचित् तीक्ष्णतरो मृदु:।[3]

कोमल के लिये कुछ असम्भव नहीं है अत: कोमल कठोर पर भागी है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 70.11
  2. शांतिपर्व महाभारत 140.65
  3. शांतिपर्व महाभारत 140.66

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