प्रीति = प्रेम
- सर्वेषु भूतेषु प्रीतिमान् भव।[1]
सभी प्राणियों से प्रेम करो।
- कस्यचिन्नाभिजानामि प्रीतिं निष्कारणामिह।[2]
इस संसार में बिना कारण किसी का भी प्रेम हो ऐसा मैं नहीं जानता।
- पीत्या शोक: प्रभवति वियोगात् तस्य देहिन:।[3]
जिससे प्रेम हो उस प्राणी के वियोग से शोक प्रकट होता है।