प्रीति (महाभारत संदर्भ)

प्रीति = प्रेम

  • सर्वेषु भूतेषु प्रीतिमान् भव।[1]

सभी प्राणियों से प्रेम करो।

  • कस्यचिन्नाभिजानामि प्रीतिं निष्कारणामिह।[2]

इस संसार में बिना कारण किसी का भी प्रेम हो ऐसा मैं नहीं जानता।

  • पीत्या शोक: प्रभवति वियोगात् तस्य देहिन:।[3]

जिससे प्रेम हो उस प्राणी के वियोग से शोक प्रकट होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 88.32
  2. शांतिपर्व महाभारत 138.153
  3. शांतिपर्व महाभारत 163.13

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