बालक (महाभारत संदर्भ)

  • दीनतो बालश्चैव स्नेहं कुर्वंति मानवा:।[1]

दीन और बालक पर मनुष्य अधिक स्नेह करते हैं।

  • न बाल इत्यवमंतव्यम्।[2]

छोटा बच्चा जानकर उसका अपमान न करें।

  • प्रवारणं तु बालानां पूर्व कार्यमिति श्रुति:।[3]

बालकों की इच्छा पहले पूरी करनी चाहिये ऐसी श्रुति है।

  • न बालै: समतामियात्।[4]

बच्चों जैसी बातें मत करो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 155.9
  2. वनपर्व महाभारत 133.7
  3. उद्योगपर्व महाभारत 7.17
  4. शांतिपर्व महाभारत 205.3

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