व्यवस्था (महाभारत संदर्भ)

  • न वै व्यवस्था भवति यदि पापो न वार्यते।[1]

यदि पापी को न रोका जाये तो कोई व्यवस्था नहीं हो सकती।

  • अव्यवस्था च सर्वत्र एतन्नाशनमात्मन:।[2]

सब जगह अव्यवस्था फैलाना अपने लिये ही विनाशकारी है।

  • यत् किंचित् कर्म मानुष्यं संस्थानाय प्रदृश्यते।[3]

जिस कर्म का भी विधान किया है सब व्यवस्था के लिये ही है।

  • संस्था यत्नैरपिकृता कालेन प्रतिभिद्यते।[4]

प्रयत्न से की गई संस्था (व्यवस्था) भी समय बीतने पर नष्ट हो जाती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 90.9
  2. अनुशासनपर्व महाभारत 37.11
  3. अनुशासनपर्व महाभारत 44.21
  4. अनुशासनपर्व महाभारत 162.11

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