संत: (महाभारत संदर्भ)

  • सद्भि: पुरस्तादभिपूजित: स्यात् सद्भिस्तथा पृष्ठतो रक्षित:।[1]

सामने भी ऋजु संतों के द्वारा पूजित हो और पीछे से भी सुरक्षित हो।

  • संत: प्रतिष्ठा हि सुखच्युतानाम्।[2]

संत ही दु:खी लोगों का आश्रय हैं।

  • संत: सत्याभिनंदिन:।[3]

सज्जन सत्य का अभिनंदन करते हैं।

  • सत्यं हि संत: प्रतिपूजयंति।[4]

संत सदा सत्य का आदर करते हैं।

  • स्मरन्ति सुकृतान्येव न वैराणि कृतान्यपि।[5]

संत औरों के उपकारों को ही याद अखते हैं उनके किये वैरों को नहीं।

  • विरोधं नाधिगच्छंति ये त उत्तमपुरुषा:।[6]

जो (किसी से) विरोध नहीं रखते वे उत्तम पुरुष हैं।

  • सन्त: परार्थं कुर्वाणा नावेक्षंते प्रतिक्रियाम्।[7]

संत परोपकार करते हुए यह नहीं देखते कि कोई क्या प्रतिक्रिया करेगा।

  • नैवं वाचा व्यवसितं भीम विज्ञायते सताम्।[8]

भीम! सज्जन जो कुछ करना चाहते हैं उसे वाणी से सूचित नहीं करते।

  • बालेषु पुत्रेषु कृपणं वदत्सु तथा वाचमवचिंवंति संत:।[9]

बालकों और पुत्रों के विन्रम वचनों से भी संत अच्छी बात चुन लेते हैं।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 87.10
  2. आदिपर्व महाभारत 88.12
  3. आदिपर्व महाभारत 93.11
  4. आदिपर्व महाभारत 93.25
  5. सभापर्व महाभारत 72.9
  6. सभापर्व महाभारत 73.6
  7. सभापर्व महाभारत 73.7
  8. सभापर्व महाभारत 77.30
  9. वनपर्व महाभारत 134.27

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