महाभारत सभा पर्व अध्याय 5 श्लोक 67-82

पंचम (5) अध्‍याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 67-82 का हिन्दी अनुवाद


  • महाराज! तुम्हारे खाद्य पदार्थ, शरीर में धारण करने के वस्त्र आदि तथा सूँघने के उपयोग में आने वाले सुगन्धित द्रव्यों की रक्षा विश्वस्त पुरुष ही करते हैं न? (67)
  • तुम्हारे कल्याण के लिये सदा प्रयत्नशील रहने वाले, स्वामिभक्त मनुष्यों द्वारा ही तुम्हारे धन-भण्डार, अन्न-भण्डार, वाहन, प्रधान द्वार, अस्त्र-शस्त्र तथा आय के साधनों की रक्षा एवं देख-भाल की जाती है न? (68)
  • प्रजापालक नरेश! क्या तुम रसोइये आदि भीतरी सेवकों तथा सेनापति आदि बाह्य सेवकों द्वारा भी पहले अपनी ही रक्षा करते हो, फिर आत्मीय जनों द्वारा एवं परस्पर एक-दूसरे से उन सब की रक्षा पर भी ध्यान देते हो? (69)
  • तुम्हारे सेवक पूर्वाह्णकाल में[1] तुमसे मद्यपान, द्यूत, क्रीड़ा और युवती स्त्री आदि दुर्व्‍यसनों में तुम्हारा समय और धन को व्यर्थ नष्ट करने के लिये प्रस्ताव तो नहीं करते? (70)
  • क्या तुम्हारी आय के एक चौथाई या आधे अथवा तीन चौथाई भाग से तुम्हारा सारा खर्च चल जाता है? (71)
  • तुम अपने आश्रित कुटुम्ब के लोगों, गुरुजनों, बड़े-बूढ़ों, व्यापारियों, शिल्पियों तथा दीन-दुखियों को धन-धान्य देकर उन पर सदा अनुग्रह करते रहते हो न? (72)
  • तुम्हारी आमदनी और खर्च को लिखने और जोड़ने के काम में लगाये हुए सभी लेखक और गणक प्रतिदिन पूर्वाह्णकाल में तुम्हारे सामने अपना हिसाब पेश करते हैं न? (73)
  • किन्हीं कार्यों में नियुक्त किये हुए प्रौढ़, हितैषी एवं प्रिय कर्मचारियों को पहले उनके किसी अपराध को जाँच किये बिना तुम काम से अलग तो नहीं कर देते हो? (74)
  • भारत! तुम उत्तम, मध्यम और अधम श्रेणी के मनुष्यों को पहचानकर उन्हें उनके अनुरूप कार्यों में ही लगाते हो न? (75)
  • राजन! तुमने ऐसे लोगों को तो अपने कामों पर नहीं लगा रक्खा है? जो लोभी, चोर, शत्रु अथवा व्यावहारिक अनूभव से सर्वथा शून्य हों? (76)
  • चोरों, लोभियों, राजकुमारों या राजकुल की स्त्रियों द्वारा अथवा स्वयं तुमसे ही तुम्हारे राष्ट्र को पीड़ा तो नहीं पहुँच रही है? क्या तुम्हारे राज्य के किसान संतुष्ट हैं? (77)
  • क्या तुम्हारे राज्य के सभी भागों में जल से भरे हुए बड़े-बड़े तालाब बनवाये गये हैं? केवल वर्षा के पानी के भरोसे ही तो खेती नहीं होती है? (78)
  • तुम्हारे राज्य के किसान का अन्न या बीज तो नष्ट नहीं होता? क्या तुम प्रत्येक किसान पर अनुग्रह करके उसे एक रूपया सैकड़े ब्याज पर ऋण देते हो? (79)
  • तात! तुम्हारे राष्ट्र में अच्छे पुरुषों द्वारा वार्ता- कृषि, गोरक्षा तथा व्यापार का काम अच्छी तरह किया जाता है न? क्योंकि उपर्युक्त वार्तावृत्ति पर अवलम्बित रहने वाले लोग ही सुखपूर्वक उन्‍नति करते हैं। (80)
  • राजन्! क्या तुम्हारे जनपद के प्रत्येक गाँव में शूरवीर, बुद्धिमान और कार्य कुशल पाँच-पाँच पंच मिल कर सुचारू रूप से जनहित के कार्य करते हुए सबका कल्याण करते हैं? (81)
  • क्या नगरों की रक्षा के लिये गाँवों को भी नगर के ही समान बुहत-से शूरवीरों द्वारा सुरक्षित कर दिया गया है? सीमावर्ती गाँवों को भी अन्‍य गाँवों की भाँति सभी सुविधाएँ दी गई हैं? तथा क्या वे सभी प्रान्त, ग्राम और नगर तुम्हें[2] धन समर्पित करते हैं[3] (82)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो कि धर्माचरण का समय है
  2. कर-रूप में एकत्र किया हुआ
  3. सीमावर्ती गाँव का अधिपति अपने यहाँ का राजकीय कर एकत्र करके ग्रामाधिपति को दे, ग्रामाधिपति नगराधिपति को, वह देशाधिपति को और देशाधिपति साक्षात राजा को वह धन अर्पित करे।

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