सप्तदश (17) अध्याय: सभा पर्व (राजसूयारम्भ पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 26-39 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार चण्डकौशिक मुनि ने उसके लिये ये आठ वर दिये। मुनि का यह वचन सुनकर उन परम बुद्धिमान् राजा बृहद्रथ ने उनके दोनों चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया और अपने घर को लौट गये। भरतश्रेष्ठ! उन उत्तम नरेश ने उचित काल का विचार करके दोनों पत्नियों के लिये वह एक फल दे दिया। उन दोनों शुभस्वरूपा रानियों ने उस आम के दो टुकड़े करके एक-एक टुकड़ा खा लिया। होने वाली बात होकर ही रहती है, इसलिये तथा मुनि की सत्यवादिता के प्रभाव से वह फल खाने के कारण दोनों रानियों के गर्भ रह गये। उन्हें गर्भवती हुई देखकर राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई। महाप्राज्ञ युधिष्ठिर! प्रसवकाल पूर्ण होने पर उन दोनों रानियों ने यथासमय अपने गर्भ से शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा किया। प्रत्येक टुकड़े में एक आँख, एक हाथ, एक पैर, आधा पेट, आधा मुँह और कटि के नीचे का आधा भाग था। एक शरीर के उन टुकड़ों को देखकर वे दोनों भय के मारे थर-थर काँपने लगीं। उनका हृदय उद्विग्न हो उठा; अबला ही तो थीं। उन दोनों बहिनों ने अत्यन्त दुखी होकर परस्पर सलाह करके उन दोनों टुकड़ों को, जिनमें जीव तथा प्राण विद्यमान थे, त्याग दिया। उन दोनों की धायें गर्भ के उन टुकड़ों को कपड़े से ढककर अन्तःपुर के दरवाजे से बाहर निकलीं और चौराहे पर फेंक कर चलीं गयीं। पुरुषसिंह! चौराहे पर फेंके हुए उन टुकड़ों को रक्त और मांस खाने वाले जरा नाम की एक राक्षसी ने उठा लिया |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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