सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 28-34 का हिन्दी अनुवाद
मेरे राज्य में रहने वाले लोग गौओं, ब्राह्मणों तथा यज्ञों के लिये सदा मंगल कामना करते रहते हैं, तो भी तुम मेरे शरीर के भीतर कैसे घुस आये? राक्षस ने कहा- स्त्रियों के व्यभिचार से, राजाओं के अन्याय से तथा ब्राह्मणों के कर्मदोष से प्रजा को भय प्राप्त होता है। जिस देश में उक्त देष होते हैं, वहाँ वर्षा नहीं होती। महामारी फैल जाती है, सदा भूख का भय बना रहता है और बडा भयानक संग्राम छिड़ जाता है। जहाँ ब्राह्मण संयमपूर्ण जीवन बिता रहे हो वहाँ यक्ष, राक्षस, पिशाच तथा असुरों से किसी प्रकार भय नहीं प्राप्त होता। केकयनरेश! तुम सभी अवस्थाओं में धर्मपर ही दृष्टि रखते हो, इसलिये कुशलपूर्वक घर को जाओ। तुम्हारा कल्याण हो। मैं अब जाता हूँ। केकयराज! जो राजा गौओं तथा ब्राह्मणों की रक्षा करते हैं और प्रजा का पालन करना अपना धर्म समझते है, उन्हें राक्षसों से भय नहीं है; फिर अग्नि से तो हो ही कैसे सकता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्व में केकयराज का उपाख्यानविषयक सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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