महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 139 श्लोक 108-113

एकोनचत्‍वारिंशदधिकशततम (139) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

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महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 108-113 का हिन्दी अनुवाद

जो स्‍वयं नगर और गाँवों के लोगों का सम्‍मान करना जानता है, वह राजा इहलोक और परलोक में सर्वत्र सुख-ही-सुख देखता है। जिसकी प्रजा सर्वदा करके भार से पीड़ित हो नित्‍य उद्विग्‍न रहती है और नाना प्रकार के अनर्थ उसे सताते रहते हैं, वह राजा पराभव को प्राप्‍त होता है। इसके विपरीत जिसकी प्रजा सरोवर में कमलों के समान विकास एवं वृद्धि को प्राप्‍त होती रहती है, वह सब प्रकार के पुण्‍यफलों का भागी होता है और स्वर्गलोक में भी सम्‍मान पाता है। राजन! बलवान के साथ युद्ध छेड़ना कभी अच्‍छा नहीं माना जाता। जिसने बलवान के साथ झगड़ा मोल ले लिया, उसके लिये कहाँ राज्‍य है और कहाँ सुख।

भीष्‍म जी कहते हैं- नरेश्‍वर! राजा ब्रह्मदत्त से ऐसा कहकर वह पूजनी चिड़िया उनसे विदा ले अभीष्ट दिशा को चली गयी। नृपश्रेष्ठ! राजा ब्रह्मदत्‍त का पूजनी चिड़िया के साथ जो संवाद हुआ था, यह मैंने तुम्‍हें सुना दिया। अब और क्‍या सुनना चाहते हो?

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अंतर्गत आपध्‍दर्मपर्व में ब्रहम्‍दत और पूजनी का संवाद विषयक एक सौ उनतालीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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