त्रयस्त्रिंशदधिकशततम (133) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: त्रयस्त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 15-20 का हिन्दी अनुवाद
दस्युओं में भी मर्यादा होती है, जैसे अच्छे डाकू दूसरों का धन तो लूटते हैं, परंतु हिंसा नहीं करते (किसी की इज्जत नहीं लेते)। जो मर्यादा का ध्यान रखते हैं, उन लुटेरों में बहुत-से प्राणी स्नेह भी करते हें, (क्योंकि उनके द्वारा बहुतों की रक्षा भी होती है)। युद्ध न करने वाले को मारना, परायी स्त्री पर बलात्कार करना, कृतघ्नता, ब्राह्मण के धन का अपहरण, किसी का सर्वस्व छीन लेना, कुमारी कन्या का अपहरण करना तथा किसी ग्राम आदि पर आक्रमण करके स्वंय उसका स्वामी बन बैठना-ये सब बातें डाकुओं में भी निन्दित मानी गयी हैं। दस्यु को भी पर स्त्री का स्पर्श और उपर्युक्त सभी पाप त्याग देने चाहिये। जिनका सर्वस्व लूट लिया जाता है, वे मनुष्य उन डाकुओं के साथ मेल-जोल और विश्वास बढ़ाने की चेष्टा करते हैं और उनके स्थान आदि का पता लगाकर फिर उनका सर्वस्व नष्ट कर देते हैं, यह निश्चित बात है। इसलिये दस्युओं को उचित है कि वे दूसरों के धन को अपने अधिकार में पाकर भी कुछ शेष छोड़ दें, सारा-का-सारा न लूट लें। ‘मैं बलवान् हूँ’ ऐसा समझकर क्रूरतापूर्ण बर्ताव न करे। जो डाकू दूसरों के धन का शेष छोड़ देते हैं, वे सब ओर अपने धन का भी अवशेष देख पाते हैं; तथा जो दूसरों के धन में से कुछ भी विशेष नहीं छोड़ते, उन्हें सदा अपने धन के भी नि:शेष हो जाने का भय बना रहता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तगर्त आपद्धर्मपर्व में एक सौ तैंतीसवां अध्याय: पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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