षडधिकशततम (106) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-28 का हिन्दी अनुवाद
’भगवन्! आपने मेरे लिये जो-जो आदेश दिया है, उसका मैं उसी रूप में पालन करूँगा। यह मेरे लिये परम कल्याण की बात है। इसके सम्बन्ध में मुझे दूसरा कोई विचार नहीं करना हैं’। तदनन्तर मिंथिलानरेश ने कोसल-राजकुमार को अपने निकट बुलाकर कहा-’नृपश्रेष्ठ ! मैंने धर्म और नीति का सहारा लेकर सम्पूर्णं जगत पर विजय पायी हैं, परंतु आज तुमने अपने गुणों से मुझे भी जीत लिया। अतः तुम अपनी अवज्ञा न करके एक विजयी वीर के समान बर्ताव करो। ’मैं तुम्हारी बुद्धि का अनादर नहीं करता, तुम्हारें पुरुषार्थ की अवहेलना नहीं करता और विजयी हूँ, यह सोचकर तुम्हारा तिरस्कार भी नहीं करता; अतः तुम विजयी वीर के समान बर्ताव करो’। ’राजन! तुम मेरे द्वारा भली-भाँति सम्मानित होकर मेरे घर पधारो।’ इतना कहकर वे दोनों परस्पर विश्वस्त हो उन ब्रह्मर्षिं की पूजा करके घर की ओर चल दिये’। विदेह राज ने कोसल-राजकुमार को आदर पूर्वक अपने महल के भीतर ले जाकर अपने उस पूजनीय अतिथि का पाद्य, अघ्र्य, आचमनीय तथा मधु पर्क के द्वारा पूजन किया। तत्पश्चात् उनके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया और दहेज में नाना प्रकार के रत्न भेंट किये। यही राजाओं का परम धर्म है, जय और पराजय तो अनित्य हैं। इस प्रकार श्री महाभारत शान्ति पर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में कालकवृक्षीय मुनि का उपदेश विषयक एक सौ छठा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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