महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 58-72

सप्तपन्चाशत्तम (57) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: सप्तपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 58-72 का हिन्दी अनुवाद

भरतश्रेष्ठ! उन सृंजयों का वह सिंहनाद सुनकर पुरुष प्रवर आपका महाबाहु पुत्र दुर्योधन अमर्ष से कुपित हो उठा और खड़ा होकर महान सर्प के समान फुंकार करने लगा। उसने दोनों आंखों से भीमसेन की ओर इस प्रकार देखा, मानो उन्हें भस्म कर डालना चाहता हो। भरतवंश का वह श्रेष्ठ वीर हाथ में गदा लेकर युद्धस्थल में भीमसेन का मस्तक कुचल डालने के लिये उनकी ओर दौड़ा। पास पहुँच कर उस भयंकर पराक्रमी महामनस्वी वीर ने महामना भीमसेन के ललाट पर गदा से आघात किया, परंतु भीमसेन पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े रह गये, तनिक भी विचलित नहीं हुए। राजन! रणभूमि में उस गदा की चोट खाकर भीमसेन के मस्तक से रक्त की धारा बह चली और वे मद की धारा बहाने वाले गजराज के समान अधिक शोभा पाने लगे। तदनन्तर अर्जुन के बड़े भाई शत्रु सूदन भीमसेन ने बलपूर्वक पराक्रम प्रकट करके वज्र और अशनि के तुल्य महान शब्द करने वाली वीर विनाशिनी लोहमयी गदा हाथ में लेकर उसके द्वारा अपने शत्रु पर प्रहार किया। भीमसेन के उस प्रहार से आहत होकर आपके पुत्र के शरीर की नस-नस ढीली हो गयी और वह वायु के वेग से प्रताड़ित हो झोंके खाने वाले विकसित शाल वृक्ष की भाँति कांपता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा।

आपके पुत्र को पृथ्वी पर पड़ा देख पाण्डव हर्ष में भरकर सिंहनाद करने लगे। इतने ही में आपक पुत्र होश में आ गया और सरोवर से निकले हुए हाथी के समान उछल कर खड़ा हो गया। सदा अमर्ष में भरे रहने वाले महारथी राजा दुर्योधन ने एक शिक्षित योद्धा की भाँति विचरते हुए अपने सामने खड़े भीमसेन पर पुनः गदा का प्रहार किया। उसकी चोट खाकर भीमसेन को सारा शरीर शिथिल हो गया और उन्होंने धरती थाम ली। भीमसेन को युद्ध स्थल में बलपूर्वक भूमि पर गिराकर कुरुराज दुर्योधन सिंह के समान दहाड़ने लगा। उसने सारी शक्ति लगाकर चलायी हुई गदा के आघात से भीमसेन के वज्रतुल्य कवच का भेदन कर दिया था। उस समय आकाश में हर्षध्वनि करने वाले देवताओं और अप्सराओं का महान कोलाहल गूंज उठा। साथ ही देवताओं द्वारा बहुत ऊंचे से की हुई विचित्र पुष्प समूहों की वहाँ अच्छी वर्षा होने लगी। राजन! तदनन्तर यह देखकर कि भीमसेन का सुदृढ़ कवच छिन्न-भिन्न हो गया, नरश्रेष्ठ भीम धराशायी हो गये और कुरुराज दुर्योधन का बल क्षीण नहीं हो रहा है, शत्रुओं के मन में बड़ा भारी भय समा गया। तत्पश्चात दो घड़ी में सचेत हो भीमसेन खून से भीगे हुए अपने मुंह को पोंछते हुए उठे और बलपूर्वक अपने को संभाल कर धैर्य का आश्रय ले आंख खोलकर देखते हुए पुनः युद्ध के लिये खड़े हो गये। उस समय यमराज के सदृश पराक्रमी नकुल और सहदेव, धृष्टद्युम्न तथा पराक्रमी शिनिपौत्र सात्यकि- ये सब के सब विजय के अभिलाषी हो ‘मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा’ ऐसा कहकर बड़ी उतावली के साथ आपके पुत्र को ललकारने और उस पर आक्रमण करने लगे। परंतु बलवान पाण्डु पुत्र भीम ने उन सब को रोककर स्वयं ही आपके पुत्र पर पुनः काल के समान आक्रमण किया और खेद एवं कम्प से रहित होकर वे रणभूमि में उसी प्रकार विचरने लगे, जैसे देवराज इन्द्र श्रेष्ठ दैत्य नमुचि पर आक्रमण करके युद्धस्थल में विचरण करते थे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में गदायुद्ध विषयक सत्तावनवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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