महाभारत शल्य पर्व अध्याय 35 श्लोक 43-61

पन्चत्रिंश (35) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: पन्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 43-61 का हिन्दी अनुवाद


जनमेजय ने पूछा- भगवन! चन्द्रमा कैसे राजयक्ष्मा से ग्रस्त हो गये और उस उत्तम तीर्थ में किस प्रकार उन्होंने स्नान किया? महामुने! उस तीर्थ में गोता लगाकर चन्द्रमा पुनः किस प्रकार हृष्ट-पुष्ट हुए? यह सब प्रसंग मुझे विस्तारपूर्वक बताइये। वैशम्पायनजी ने कहा- तात! प्रजानाथ! प्रजापति दक्ष के बहुत सी संतानें उत्पन्न हुई थीं। उनमें से अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह उन्होंने चन्द्रमा के साथ कर दिया था। राजेन्द्र! शुभकर्म करने वाले सोम की वे पत्नियां समय की गणना के लिये नक्षत्रों से सम्बन्ध रखने के कारण उसी नाम से विख्यात हुई। वे सब की सब विशाल नेत्रों से सुशोभित होती थीं। इस भूतल पर उनके रूप की समानता करने वाली कोई स्त्री नहीं थी। उनमें भी रोहिणी अपने रूप-वैभव की दृष्टि से सब की अपेक्षा बढ़ी-चढ़ी थी। इसलिये भगवान चन्द्रमा उससे अधिक प्रेम करने लगे, वही उनकी हृदयवल्लभा हुई; अतः वे सदा उसी का उपभोग करते थे। राजेन्द्र! पूर्वकाल में चन्द्रमा सदा रोहिणी के ही समीप रहते थे; अतः नक्षत्र नाम से प्रसिद्ध हुई महात्मा सोम की वे सारी पत्नियां उन पर कुपित हो उठीं। और आलस्य छोड़कर अपने पिता के पास जाकर बोलीं- ‘प्रभो! चन्द्रमा हमारे पास नहीं आते। वे सदा रोहिणी का ही सेवन करते हैं। अतः प्रजेश्वर! हम सब बहिनें एक साथ नियमित आहार करके तपस्या में संलग्न हो आपके ही पास रहेंगी’।

उनकी यह बात सुनकर प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा से कहा- ‘सोम! तुम अपनी सभी पत्नियों के साथ समानतापूर्ण बर्ताव करो, जिससे तुम्हें महान पाप न लगे’। फिर दक्ष ने उन सभी कन्याओं से कहा- ‘अब तुम लोग चन्द्रमा के पास ही जाओ। वे मेरी आज्ञा से तुम सब लोगों के प्रति समान भाव रखेंगे’। पृथ्वीनाथ! पिता के बिदा करने पर वे पुनः चन्द्रमा के घर में लौट गयीं, तथापि भगवान सोम फिर रोहिणी के पास ही अधिकाधिक प्रेमपूर्वक रहने लगे। तब वे सब कन्याएं पुनः एक साथ अपने पिता के पास जाकर बोलीं- ‘हम सब लोग आपकी सेवा में तत्पर रहकर आपके ही समीप रहेंगी। चन्द्रमा हमारे साथ नहीं रहते। उन्होंने आपकी बात नहीं मानी’। उनकी बात सुनकर दक्ष ने पुनः सोम से कहा- ‘प्रकाशमान चन्द्रदेव! तुम अपनी सभी पत्नियों के साथ समान बर्ताव करो, नहीं तो तुम्हे शाप दे दूंगा’। दक्ष के इतना कहने पर भी भगवान चन्द्रमा उनकी बात की अवहेलना करके केवल रोहिणी के ही साथ रहने लगे। यह देख दूसरी स्त्रियां पुनः क्रोध से जल उठीं और पिता के पास जा उनके चरणों में मस्तक नवाकर प्रणाम करने के अनन्तर बोलीं- ‘भगवन! सोम हमारे पास नहीं रहते। अतः आप हमें शरण दें। भगवान चन्द्रमा सदा रोहिणी के ही समीप रहते हैं। वे आपकी बात को कुछ गिनते ही नहीं हैं। हम लोगों पर स्नेह रखना नहीं चाहते हैं; अतः आप हम सब लोगों की रक्षा करें, जिससे चन्द्रमा हमारे साथ भी सम्बन्ध रखें’। पृथ्वीनाथ! यह सुनकर भगवान दक्ष कुपित हो उठे। उन्होंने चन्द्रमा के लिये रोषपूर्वक राजयक्ष्मा की सृष्टि की। वह चन्द्रमा के भीतर प्रविष्ट हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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