पन्चत्रिंश (35) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: पन्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 43-61 का हिन्दी अनुवाद
उनकी यह बात सुनकर प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा से कहा- ‘सोम! तुम अपनी सभी पत्नियों के साथ समानतापूर्ण बर्ताव करो, जिससे तुम्हें महान पाप न लगे’। फिर दक्ष ने उन सभी कन्याओं से कहा- ‘अब तुम लोग चन्द्रमा के पास ही जाओ। वे मेरी आज्ञा से तुम सब लोगों के प्रति समान भाव रखेंगे’। पृथ्वीनाथ! पिता के बिदा करने पर वे पुनः चन्द्रमा के घर में लौट गयीं, तथापि भगवान सोम फिर रोहिणी के पास ही अधिकाधिक प्रेमपूर्वक रहने लगे। तब वे सब कन्याएं पुनः एक साथ अपने पिता के पास जाकर बोलीं- ‘हम सब लोग आपकी सेवा में तत्पर रहकर आपके ही समीप रहेंगी। चन्द्रमा हमारे साथ नहीं रहते। उन्होंने आपकी बात नहीं मानी’। उनकी बात सुनकर दक्ष ने पुनः सोम से कहा- ‘प्रकाशमान चन्द्रदेव! तुम अपनी सभी पत्नियों के साथ समान बर्ताव करो, नहीं तो तुम्हे शाप दे दूंगा’। दक्ष के इतना कहने पर भी भगवान चन्द्रमा उनकी बात की अवहेलना करके केवल रोहिणी के ही साथ रहने लगे। यह देख दूसरी स्त्रियां पुनः क्रोध से जल उठीं और पिता के पास जा उनके चरणों में मस्तक नवाकर प्रणाम करने के अनन्तर बोलीं- ‘भगवन! सोम हमारे पास नहीं रहते। अतः आप हमें शरण दें। भगवान चन्द्रमा सदा रोहिणी के ही समीप रहते हैं। वे आपकी बात को कुछ गिनते ही नहीं हैं। हम लोगों पर स्नेह रखना नहीं चाहते हैं; अतः आप हम सब लोगों की रक्षा करें, जिससे चन्द्रमा हमारे साथ भी सम्बन्ध रखें’। पृथ्वीनाथ! यह सुनकर भगवान दक्ष कुपित हो उठे। उन्होंने चन्द्रमा के लिये रोषपूर्वक राजयक्ष्मा की सृष्टि की। वह चन्द्रमा के भीतर प्रविष्ट हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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