महाभारत विराट पर्व अध्याय 9 श्लोक 14-31

नवम (9) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: नवम अध्‍याय: श्लोक 14-31 का हिन्दी अनुवाद


कल्याणी! बताओ, तुम वास्तव में कौन हो? दासी तो तुम किसी प्रकार भी नहीं हो सकतीं। तुम यक्षी हो या देवी? गन्धर्व कन्या हो या अप्सरा? देवकन्या हो या नागकन्या? अथवा इस नगरी की अधिष्ठात्री देवी तो नहीं हो? विद्याधरी, किन्नरी या चन्द्रदेव की पत्नी रोहिणी तो नहीं हो? तुम अलम्बुषा, मिश्रकेशी, पुण्डरीका अथवा मालिनी नाम की अप्सरा तो नहीं हो? क्या तुम इन्द्राणी, वारुणी देवी, विश्वकर्मा की पत्नी अथवा प्रजापति ब्रह्मा की शक्ति सावित्री हो? शुभे! देवताओं के यहाँ जो प्रसिद्ध देवियाँ हैं, उनमें से तुम कौन हो?

द्रौपदी बोली- रानीजी! मैं न तो देवी हूँ, न गन्धर्वी; न असुरपत्नी हूँ, न राक्षसी। मैं तो सेवा करने वाली सैरन्ध्री हूँ। यह मैं सच-सच कह रही हूँ। मैं केशों का श्रृंगार करना जानती हूँ तथा उबटन या अंगराग बहुत अच्छा पीस लेती हूँ। शुभे! मैं मल्लिका, उत्पल, कमल और चम्पा आदि के फूलों के बहुत सुन्दर एवं विचित्र हार भी गूँथ सकती हूँ। पहले मैं श्रीकृष्ण की प्यारी रानी सत्यभामा तथा कुरुकुल की एकमात्र सुन्दरी पाण्डवों की धर्मपत्नी द्रौपदी की सेवा में रह चुकी हूँ। मैं भिन्न-भिन्न स्थानों में सेवा करके उत्तम भोजन पाती हुई विचरती हूँ। मुझे जितने वस्त्र मिल जाते हैं, उतने में ही मैं प्रसन्न रहती हूँ। स्वयं देवी द्रौपदी ने मेरा नाम ‘मालिनी’ रख दिया था। देवि सुदेष्णे! आज वही मैं सैरन्ध्री आपके महल में आयी हूँ।

सुदेष्णा ने कहा- सुन्दरी! यदि मेरे मन में संदेह न होता, तो मैं तुम्हें अपने सिर माथे रचा लेती। यदि राजा तुम्हें चाहने न लगें- सम्पूर्ण चित्त से तुम पर आसक्त न हो जायें तो तुम्हें रखने में मुझे कोई आपत्ति न होगी। इस राजकुल में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब एकटक तुम्हारी ओर निहार रही हैं; फिर पुरुष कौन ऐसा होगा, जिसे तुम मोहित न कर सको? देखो, मेरे भवन में ये जो वृक्ष खड़े हैं, वे भी तुम्हें देखने के लिये मानो झुके से पड़ते हैं। फिर पुरुष कौन ऐसा होगा, जिसे तुम मोहित न कर लो? सुन्दर नितम्बों वाली सुन्दरी! तुम्हारे सम्पूर्ण अंग सुन्दर हैं। राजा विराट तुम्हारा यह दिव्य रूप देखते ही मुझे छोड़कर सम्पूर्ण चित्त से तुम्हीं में आसक्त हो जायेंगे। निर्दोष अंगों तथा चंचल एवं विशाल नेत्रों वाली सैरन्ध्री! जिस पुरुष की ओर तुम ध्यान से देख लोगी, वही काम के अधीन हो जायेगा। शुभांगि! चारुहासिनी! इसी प्रकार जो पुरुष प्रतिदिन तुम्हें देखेगा, वह भी कामदेव के वशीभूत हो जायेगा। सुभ्रु! जैसे कोई मूर्ख मनूष्य आत्महत्या के लिये (गिरने के उद्देश्य से) वृक्षों पर चढ़े, उसी प्रकार राजमहल में या अपने घर में तुम्हें रखना मेरे लिये अनिष्टकारी हो सकता है। शुचिस्मिते! जैसे केंकड़े की मादा अपनी मृत्यु के लिये ही गर्भ धारण करती है, उसी प्रकार तुम्हें इस घर में ठहराना मैं अपने लिये मरण के तुल्य मानती हूँ।

द्रौपदी बोली- भामिनि! मुझे राजा विराट या दूसरा कोई पुरुष कभी नहीं पा सकता। पाँच तरुण गन्धर्व मेरे पति हैं। वे सब किसी महान् शक्तिशाली गन्धर्वराज के पुत्र हैं। वे ही मेरी रक्षा करते हैं तथा में स्वयं भी दुर्धर्ष हूँ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः