महाभारत विराट पर्व अध्याय 72 श्लोक 10-25

द्विसप्ततितम (72) अध्याय: विराट पर्व (वैवाहिक पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 10-25 का हिन्दी अनुवाद


विराट बोले- पार्थ! आप कौरवों में श्रेष्ठ और कुन्ती देवी के पुत्र हैं। धनंजय में इस प्रकार का धर्म का विचार होना उचित ही है। पाण्डु के पुत्र अर्जुन ही इस प्रकार नित्य धर्म परायण और ज्ञान सम्पन्न हो सकते हैं। अब इसके बाद जो कर्तव्य आप ठीक समझें, उसे पूर्ण करें। मेरी सब कामनाएँ पूर्ण हो गयीं। जिसके सम्बन्धी अर्जुन हो रहे हों, उसकी कौन सी कामना अपूर्ण रह सकती है?

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! महाराज विराट के ऐसा कहने पर कुन्ती नन्दन युधिष्ठिर ने उचित अवसर जान मत्स्य नरेश और पार्थ के इस सम्बन्ध का अनुमोदन किया। जनमेजय! तदनन्तर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर तथा राजा विराट ने अपने अपने सम्पूर्ण सुहृदों एवं सगे सम्बन्धियों को तथा भगवान वासुदेव को भी निमन्त्रण भेजा। पाँचों पाण्डवों का तेरहवाँ वर्ष तो पूर्ण हो ही चुका था, वे सब के सब राजा विराट के उपप्लव्य नामक नगर में आकर रहने लगे। पाण्डु नन्दन अर्जुन ने आनर्त देश से अभिमन्यु, भगवान वासुदेव तथा दशार्हवंश के अपने अन्य सम्बन्धियों को भी वहाँ बुलावा लिया। काशिराज और शैव्य दोनों युधिष्ठिर के बड़े प्रेमी थे। वे दोनों नरेश एक एक अक्षौहिणी सेना के साथ उपप्लव्य नगर में आये। महाबली राजा द्रुपद भी एक अक्षौहिणी सेना के साथ पधारे। उनके साथ द्रौपदी के पाँचों वीर पुत्र, कभी परास्त न होने वाले शिखण्डी और समस शस्त्र धारियों में श्रेष्ठ एवं दुर्धर्ष धृरूटद्युम्न भी थे। इनके सिवा और भी अनेक राजा वहाँ पधारे, जो सबके सब एक एक अक्षौहिणी सेना के पालक, यज्ञकर्ता यज्ञों में अधिक से अधिक दक्षिणा देने वाले, वेद और अवभृथ ( यज्ञान्त ) स्नान से सम्पन्न, शूरवीर तथा पाण्डवों के लिये प्राण देने वाले थे। धर्मात्माओं में श्रेष्ठ मत्स्य नरेश विराट ने उन्हें आया हुआ देख सेवकों, सेना और सवारियो सहित उन सबका विधि पूर्वक स्वागत सत्कार किया।

अभिमन्यु को अपनी पुत्री का वाग्दान करके राजा विराट बहुत प्रसन्न थे। तत्पश्चात सब राजा लोग अपने अपने लिये नियत किये हुए स्थानों मे विश्राम के लिये पधारे। वहाँ वनमाला धारी वसुदेवनन्दन भगवान श्रीेकृष्ण, हलरूपी शस्त्र धारण करने वाले बलराम, हृदीक पुत्र कृतवर्मा, युयुधान नाम से प्रसिद्ध सात्यकि, अनाधृष्टि, अक्रूर, साम्ब और निशठ- ये सभी शत्रु संतापन वीर अभिमन्यु और उसकी माता सुभद्रा को साथ लिये वहाँ पधारे। जिन्होंने एक वर्ष तक द्वारका में निवास किया था, वे इन्द्रसेन आदि सारथि भी अच्छी तरह सब सामग्रियों से सम्पन्न किये हुए रथों सहित वहाँ आये थे। परम तेजस्वी वृष्णि वंश शिरोमणि भगवान वासुदेव के साथ दस हजार हाथी, उनसे दुगुने अर्थात बीस हजार घोड़े, दस हजार रथ और दस लाख पैदल सेना थी। इसके सिवा वृष्णि, अन्धक तथा भोजवंश के और भी बहुत से महा पराक्रमी वीर उनके साथ पधारे थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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