महाभारत विराट पर्व अध्याय 57 श्लोक 29-43

सप्तपंचाशत्तम (57) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 29-43 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन द्वारा धनुष काट दिये जाने पर गौतम ( कृप ) ने दूसरा धनुष लेकर उस पर प्रत्यन्चा चढ़ा ली। यह एक अद्भुत सा बात हुई। परंतु कुन्ती नन्दन ने झुकी हुई गाँठ वाले एक बाण से उनके उस धनुष को भी काट दिया और इसी प्रकार कृपाचार्य के बहुत से दूसरे धनुष भी शत्रुवीरों का संहार करने वाले पाण्डु नन्दन ने हाथ की फुर्ती दिखाने में कुशल वीर की भाँति छिन्न भिनन कर डाले। इस तरह धनुष कट जाने पर प्रतापी कृपाचार्य ने पाण्डुपुत्र अर्जुन पर वज्र की भाँति प्रज्वलित रथ याक्ति चलायी। तब अर्जुन ने भारी उल्का की भाँति अपनी ओर आती हुई उस सुवर्ण भूषित शक्ति को दस बाण मारकर आकाश में ही काअ डाला। बुद्धिमान् पार्थ के द्वारा दस टुकड़ों में कटी हुई वह शक्ति पृथ्वी पर गिर पड़ी। तब कृपाचार्य ने पुनः प्रत्यन्चा सहित धनुष लेकर उसके ऊपर एक ही साथ भल्ल नामक दस बाणों का संधान किया और उन दसों तीक्ष्ण बाणों द्वारा तुरंत ही अर्जुन को बींध डाला। तदनन्तर महातेजस्वी कुन्ती पुत्र ने उस संग्राम भूमि में कुपित हो ( कृपाचार्य पर ) पत्थर पर रगड़कर तेज किये हुए अग्नि के समान तेजस्वी तेरह बाण चलाये।

एक बाण से उनके रथ का जूआ काटकर चार बाणों से चारों घोड़े मार डाले और छठे बाण से रथ के सारथि का सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर उन महारथी अर्जुन ने तीन बाणों से रथ के तीनों वेणु, दो से रथ का धुरा और बारहवें भल्ल नामक बाण से उनके रथ की ध्वजा को भी उस समय रण भूमि में काट गिराया। इसके बाद इन्द्र के समान पराक्रमी फाल्गुन ने हँसते हुए से वज्र सदृश तेरहवें बाण द्वारा कृपाचार्य की छाती में चोट पहुँचायी। इस प्रकार धनुष, रथ, घोड़े और सारथि आदि के नष्ट हो जाने पर कृपाचार्य हाथ में गदा लिये रथ से कूद पड़े और तुरंत ही उसे अर्जुन पर दे मारा। जिसका सुवर्ण आदि से भली-भाँति परिष्कार किया गया था, वह कृपाचार्य द्वारा चलायी हुई भारी गदा अर्जुन के बाणों से प्रेरित हो उल्टी लौट गयी। शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य अत्यन्त अमर्ष में भरे थे। उनके प्राण बचाने की इच्छा वाले कौरव सैनिक सब ओर से आकर उस युद्ध में अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे।। यह देख विराट पुत्र उत्तर ने घोड़ों को दाँयीं ओर से घुमाकर यमक मण्डल से रथ संचालन करते हुए उन सब योद्धाओं को बाण वर्षा से रोक दिया। इतने में ही वे नरश्रेष्ठ सैनिक कुन्ती पुत्र धनुजय से डरकर रथहीन कृपाचार्य को बड़े वेग से हटा ले गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोष्ठी गौओं के अपहरण के प्रसंग में कृपाचार्य का पलायन सम्बन्धी सत्तावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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