महाभारत विराट पर्व अध्याय 49 श्लोक 11-23

एकोनपंचाशत्तम (49) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 11-23 का हिन्दी अनुवाद


किंतु कर्ण! तुम तो बताओ, तुमने पहले कभी अकेले रहकर इस जगत् में कौन सा पुरुषार्थ किया है ? पाण्डवों में से तो एक एक ने विभिन्न दिशाओं में जाकर वहाँ के भूपालों को अपने वश में कर लिया था ( क्या तुमने भ्ज्ञी ऐसा कोई कार्य किया है ? )। अर्जुन के साथ तो इन्द्र भी रण भूमि में खड़े होकर युद्ध नहीं कर सकते। फिर जो उनसे अकेले भिड़ने की बात करता है, ( वह पागल है। ) उसकी दया करानी चाहिये। सूत पुत्र! ( अर्जुन के साथ अकेले भिड़ने का साहस करके ) तुम मानो क्रोध में भरे हुए विषधर सर्प के मुख में से उसके दाँत उखाड़ लेना चाहते हो। अथवा वन में अकेले घूमते हुए तुम बिना अंकुश के ही मतवाले हाथी की पीठ पर बैठकर नगर में जाना चाहते हो। अथवा अपने शरीर में घी पोतकर चिथड़े या वल्कल पहने हुए तुम घी, मेदा और चर्बी आदि की आहुतियों से प्रज्वलित आग के भीतर से होकर निकलना चाहते हो।

अपने आपको बन्धन में जकड़कर और गले में बड़ी भारी शिला बाँधकर कौन दोनों हाथों से तैरता हुआ समुद्र को पार कर सकता है ? उसमें क्या यह पुरुषार्थ है! अर्थात् मूर्खता है। कर्ण! जिसने अस्त्र शस्त्रों की पूर्ण शिक्षा न पायी हो, वह अत्यनत दुर्बल पुरुष यदि अस्त्र शस्.ों की कला में प्रवीण तािा कुन्ती पुत्र अर्जुन जैसे बलवान् वीर से युद्ध करना चाहे, तो समझना चाहिये कि उसकी बुद्धि मारी गयी है। हम लोगों ने तेरह वर्षों तक इन्हें वन में रखकर इनके साथ कपटपूर्ण बर्ताव किया है। ( अब ये प्रतिज्ञा के बन्धन से मुक्त हो गये हैं; ) अतः बन्धन से छूटे हुए सिंह की भाँति क्या वे हमारा विनाश न कर डालेंगे ? कुएँ में छिपी हुई अग्नि के समान यहाँ एकान्त में स्थित कुनती पुत्र अर्जुन के पास मि अज्ञानवश आ पहुँचे हैं और भारी संकट में पड़ गये हैं। इसलिये हमारा विचार है हम लोग एक साथ संगठित होकर यहाँ आये हुए रणोन्मत्त अर्जुन के साथ युद्ध करें। हमारे सैनिक कवच बाँधकर खड़े रहें, सेना का व्यूह बना लिया जाय और सब लोग प्रहार करने के लिये उद्यत हो जायँ।

कर्ण! तुम अकेले अर्जुन से भिड़ने का दुःसाहस न करो। आचार्य द्रोण, दुर्योधन, भीष्म, तुम, अश्वत्थामा और हम सब मिलकर अर्जुन से युद्ध करेंगे। यदि हम छहों महारथी संगठित होकर सामना करें, तभी इन्द्र के सदृश दुर्धर्ष एवं दृढ़ निश्चयी कुन्ती पुत्र अर्जुन के साथ युद्ध कर सकते हैं। सेनाओं की व्यूह रचना हो जाय और हम सभी श्रेष्ठ धनुर्धर सावधान रहें, तो जैसे दानव इन्द्र से भिड़ते हैं, उसी प्रकार हम युद्ध में अर्जुन का सामना कर सकते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह के समय कृपाचार्य वाक्य विषयक उनचासवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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