अष्टाशीतितम (88) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: अष्टाशीतितम अध्याय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर! सुराष्ट्र में ही समुद्र के तट पर प्रभास क्षेत्र है, जो देवताओं का तीर्थ कहा जाता है। वहीं पिण्डारक नामक तीर्थ है, जो तपस्वीजनों द्वारा सेवित और कल्याणस्वरूप है। उधर ही उज्जयन्त नामक महान् पर्वत है, जो शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाला है। युधिष्ठिर! उसके विषय में देवर्षिप्रवर श्रीनारद जी के द्वारा कहा हुआ एक प्राचीन श्लोक सुना जाता है, उसको मुझसे सुनो। पुण्यपर्वत पर तपस्या करने वाला पुरुष स्वर्गलोक में पूजित होता है। उज्जयन्त के ही आसपास पुण्यमयी द्वारकापूरी है, जहाँ साक्षात् पुराणपुरुष भगवान् मधुसूदन निवास करते हैं। वे ही सनातन धर्मस्वरूप हैं। जो वेदवेत्ता और अध्यात्मशास्त्र के विद्वान् ब्राह्मण हैं, वे परमात्मा श्रीकृष्ण को ही सनातन धर्मरूप बताते हैं। भगवान् गोविन्द पवित्रों को भी पावन करने वाले परमपवित्र कहे जाते हैं। वे पुण्यों के भी पुण्य और मंगलों के भी मंगल हैं। कमलनयन देवाधिदेव सनातन श्रीहरि अविनाशी परमात्मा, व्यथात्मा (क्षरपुरुष), क्षेत्रज्ञ और परमेश्वर हैं। वे अचिन्त्यस्वरूप भगवान् मधुसूदन वहीं द्वारकापुरी में विराजमान हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में धौम्यतीर्थयात्रा विषयक अठासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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