महाभारत वन पर्व अध्याय 85 श्लोक 22-43

पंचाशीतितम (85) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद


राजन्! तदनन्तर अप्सराओं से आवृत कावेरी नदी की यात्रा करे। वहाँ स्नान करने से मनुष्य सहस्र गोदान का फल पाता है। राजेन्द्र! तत्पश्चात् समुद्र के तट पर विद्यमान कन्यातीर्थ (कन्याकुमारी) में जाकर स्नान करे। उस तीर्थ में स्नान करते ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। महाराज! इसके बाद समुद्र के मध्य में विद्यमान त्रिभुवनविख्यात अखिल लोकवंदित गोकर्णतीर्थ में जाकर स्नान करे। जहाँ ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन महर्षि, भूत, यक्ष, पिशाच, किन्नर, महानाग, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, मनुष्य, सर्प, नदी, समुद्र और पर्वत-ये सभी उमावल्लभ भगवान् शंकर की उपासना करते हैं। वहाँ भगवान् शिव की पूजा करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और गणपति पद प्राप्त कर लेता है। वहाँ बारह रात निवास करने से मनुष्य का अन्तःकरण पवित्र हो जाता है।

वहीं गायत्री का त्रिलोकपूजित स्थान है। वहाँ तीन रात निवास करने वाला पुरुष सहस्र गोदान का फल प्राप्त करता है। नरेश्वर! ब्राह्मणों की पहचान के लिये वहाँ प्रत्यक्ष उदाहरण है। राजन्! जो वर्णसंकर योनि में उत्पन्न हुआ है, वह यदि गायत्री मंत्र का पाठ करता है, तो उसके मुख से वह गाथा या गीत की तरह स्वर और वर्णों के नियम से रहित होकर निकलती है अर्थात् वह गायत्री का उच्चारण ठीक नहीं कर सकता। जो सर्वथा ब्राह्मण नहीं है, ऐसा मनुष्य यदि वहाँ गायत्री मन्त्र का पाठ करे तो वहाँ वह मन्त्र लुप्त हो जाता है अर्थात् उसे भूल जाता है। राजन्! वहाँ ब्रह्मर्षि संवर्त की दुर्लभ बावली है। उसमें स्नान करके मनुष्य सुन्दर रूप का भागी और सौभाग्यशाली होता है। तदनन्तर वेणा नदी के तट पर जाकर तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य (मृत्यु के पश्चात्) मोर और हंसों से जुते हुआ विमान को प्राप्त करता है।

तत्पश्चात् सदा सिद्ध पुरुषों से सेवित गोदावरी के तट पर जाकर स्नान करने से तीर्थयात्री गोमेध यज्ञ का फल पाता और वासुकि के लोक में जाता है। वेणासंगम में स्नान करके मनुष्य अश्वमेध यज्ञ के फल का भागी होता है। वरदासंगमतीर्थ में स्नान करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्मस्थान में जाकर तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य सहस्र गोदान का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है।। कुशप्लवनतीर्थ में जाकर स्नान करके ब्रह्मचर्य-पालनपूर्वक एकाग्रचित्त हो तीन रात निवास करने वाला पुरुष अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर कृष्णवेणा के जल से उत्पन्न हुए रमणीय देवकुण्ड में, जिसे जातिस्मर ह्नद कहते हैं, स्नान करे। वहाँ स्नान करने से मनुष्य जातिस्मर (पूर्वजन्म की बातों को स्मरण करने की शक्ति वाला) होता है। वहाँ सौ यज्ञों का अनुष्ठान करके देवराज इन्द्र स्वर्ग के सिंहासन पर आसीन हुए थे। भरतनंदन! वहाँ जाने मात्र से यात्री अग्निष्टोम यज्ञ का फल पा लेता है। तत्पश्चात सर्वदेवह्नद में स्नान करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।

तदनन्तर परम पुण्यमयी वापी और सरिताओं में श्रेष्ठ पयोष्णी में जाकर स्नान करे और देवताओं तथा पितरों के पूजन में तत्पर रहे, ऐसा करने से तीर्थसेवी को सहस्र गोदान का फल मिलता है। राजन्! भरतनन्दन! जो दण्डकारण्य में जाकर स्नान करता है, उसे स्नान करने मात्र से सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है। शरभंग मुनि तथा महात्मा शुक के आश्रम पर जाने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और अपने कुल को पवित्र कर देता है। तदनन्तर परशुरामसेवित शूर्पारकतीर्थ की यात्रा करे। वहाँ रामतीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को प्रचुर सुवर्ण राशि की प्राप्ति होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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