महाभारत वन पर्व अध्याय 76 श्लोक 38-53

षट्सप्ततितम (76) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 38-53 का हिन्दी अनुवाद


‘तुम्हारी प्राप्ति के लिये दमयन्ती ने यह अनुपम उपाय ढूंढ़ निकाला था; क्योंकि इस जगत् में तुम्हारे सिवा काई दूसरा पुरुष नहीं है, जो एक दिन में सौ योजन (रथ द्वारा) जा सके। राजन्! भीमकुमारी दमयन्ती तुम्हारे योग्य है और तुम दमयन्ती के योग्य हो। तुम्हें इसके चरित्र के विषय में कोई शंका नहीं करनी चाहिये। तुम अपनी पत्नी से निःशंक होकर मिलो’। वायु देव के ऐसा कहते समय आकाश से फूलों की वर्षा हो रही थी, देवताओं की दुन्दुभियां बज रही थीं और मंगलमय पवन चलने लगा।

युधिष्ठिर! यह अद्भुत दृश्य देखकर शत्रुसूदन राजा नल ने दमयन्ती के विरुद्ध होने वाली शंका को त्याग दिया। तदनन्तर उन भूपाल ने नागराज कर्कोटक का स्मरण करके उसके लिये हुए अजीर्ण वस्त्र को ओढ़ लिया। उससे उन्हें अपने पूर्वस्वरूप की प्राप्ति हो गयी। अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए अपने पतिदेव पुण्यश्लोक महाराज नल को देखकर सती साध्वी दमयन्ती उनके हृदय से लगकर उच्च स्वर में रोने लगी। राजा नल का रूप पहले की भाँति ही प्रकाशित हो रहा था। उन्होंने भी दमयन्ती को छाती से लगा लिया और अपने दोनों बालकों को भी प्यार-दुलार करके प्रसन्न किया। तत्पश्चात् सुन्दर मुख और विशाल नेत्रों वाली दमयन्ती नल के मुख को अपने वक्षःस्थल पर रखकर दुःख से व्याकुल हो लंबी सांसें खींचने लगी। इसी प्रकार पवित्र मुस्कान और मैल से भरे हुए अंगों वाली दमयन्ती को हृदय से लगाकर पुरुषसिंह नल बहुत देर तक शोकमग्न खड़े रहे।

राजन्! तदनन्तर (दमयन्ती के द्वारा मालूम होने पर) दमयन्ती की माता ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक राजा भीम से नल-दमयन्ती का सारा वृत्तान्त यथावत कह सुनाया। तब महाराज भीम ने कहा- ‘आज नल को सुखपूर्वक यहीं रहने दो। कल सबेरे स्नान आदि से शुद्ध हुए दमयन्ती सहित नल से मैं मिलूंगा’। राजन्! तत्पश्चात् वे दोनों दम्पति रातभर वन में रहने की पुरानी घटनाओं को एक-दूसरे से कहते हुए प्रसन्नतापूर्वक एक साथ रहे। एक-दूसरे को सुख देने की इच्छा रखने वाले दमयन्ती और नल राजा भीम के महल में प्रसन्नचित होकर रहे। चौथे वर्ष में अपनी प्यारी पत्नी से मिलकर सम्पूर्ण कामनाओं से सफलमनोरथ हो नल अत्यन्त आनंद में निमग्न हो गये। जैसे आधी जमी हुई खेती से भरी वसुधा वर्षा का जल पाकर उल्लसित हो उठती है, उसी प्रकार दमयन्ती भी अपने पति को पाकर बहुत संतुष्ट हुई। जैसे चन्द्रोदय से रात्रि की शोभा बढ़ जाती है, उसी प्रकार भीमकुमारी दमयन्ती पति से मिलकर आलस्य का त्याग करके निश्चिन्त और हर्षोल्लसित हृदय से पूर्णकाम होकर अत्यन्त शोभा पाने लगी।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में नल-दमयन्ती समागमन विषयक छिहतरवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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