द्विसप्ततितम (72) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 39-43 का हिन्दी अनुवाद
कलियुग के आश्रय लेने से बहेड़े का वृक्ष निन्दित हो गया। तदनन्तर राजा नल ने प्रसन्नचित से पुनः घोड़ों को हांकना आरम्भ किया। वे उत्तम अश्व पक्षियों की तरह बार-बार उड़ते हुए से प्रतीत हो रहे थे। अब महायशस्वी राजा नल विदर्भ देश की ओर (बड़े वेग से बढ़े) जा रहे थे। नल के चले जाने पर कलि अपने घर चले गये। राजन्! कलि से मुक्त हो भूमिपाल राजा नल सारी चिन्ताओं से छुटकारा पा गये; किंतु अभी तक उन्हें अपना पहला रूप नहीं प्राप्त हुआ था। उनमें केवल इतनी ही कमी रह गयी थी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में कलियुग निर्गमन विषयक बहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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