महाभारत वन पर्व अध्याय 60 श्लोक 20-25

षष्टितम (60) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 20-25 का हिन्दी अनुवाद


‘वहाँ इन देनों बालकों को, इस रथ को और इन घोड़ों को भी मेरे भाई-बन्धुओं की देख-रेख में सौंपकर तुम्हारी इच्छा हो तो वहीं रह जाना या अन्यत्र कहीं चले जाना’।

दमयन्ती की यह बात सुनकर नल के सारथि वार्ष्‍णेय ने नल के मुख्य-मुख्य मंत्रियों से यह सारा वृत्तान्त निवेदित किया।

राजन्! उनसे मिलकर इस विषय पर भलीभाँति विचार करके उन मंत्रियों की आज्ञा ले सारथि वार्ष्‍णेय ने दोनों बालकों को रथ पर बैठाकर विदर्भ देश को प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचकर उसने घोड़ों को, उस श्रेष्ठ रथ को तथा उस बालिका इन्द्रसेना को एवं राजकुमार इन्द्र को वहीं रख दिया तथा राजा भीम से विदा ले आर्तभाव से राजा नल की दुर्दशा के लिये शोक करता हुआ घूमता-घामता अयोध्या नगरी में चला गया।

युधिष्ठिर! वह अत्यन्त दु:खी हो राजा ऋतुपर्ण की सेवा में उपस्थित हुआ और उनका सारथि बनकर जीविका चलाने लगा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यसानपर्व में नल की कन्या और पुत्र को कुण्डिनपुर भेजने से सम्बन्ध रखने वाला साठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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