एकोनत्रिंशदधिकद्विशततम (229) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)
महाभारत: वन पर्व: एकोनत्रिंशदधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 17-33 का हिन्दी अनुवाद
स्कन्द बोले- 'देवेन्द्र! आप ही देवराज के पद पर प्रतिष्ठित रहें। आपका कल्याण हो। आप ही तीनों लोकों के तथा मेरे भी स्वामी हैं। आपकी किस आज्ञा का पालन करूँ? यह मुझे बताने की कृपा करें।' इन्द्र ने कहा- 'महाबलवान् स्कन्द! मैं तुम्हारे कहने से इन्द्र-पद पर प्रतिष्ठित रहूंगा। यदि वास्तव में तुम मेरी आज्ञा का पालन करना चाहते हो, यदि तुमने यह निश्चित बात कही है अथवा यदि तुम्हारा यह कथन सत्य है, तो मेरी यह बात सुनो। महावीर! तुम देवताओं के सेनापति के पद पर अभिषेक करा लो।' स्कन्द बोले- 'देवराज! दानवों के विनाश, देवताओं के कार्य की सिद्धि तथा गौओं और ब्राह्मणों के हित के लिये सेनापति के पद पर मेरा अभिषेक कीजिये।' मार्कण्डेय जी कहते हैं- युधिष्ठिर! तदनन्तर समस्त देवताओं सहित इन्द्र ने कुमार का देवसेनापति के पद पर अभिषेक कर दिया। उस समय वहाँ महर्षियों द्वारा पूजित होकर स्कन्द की बड़ी शोभा हुई। उनके ऊपर तना हुआ वह सुवर्णमय छत्र उद्भासित हो रहा था, मानो प्रज्वलित अग्नि का अपना ही मण्डल प्रकाशित होता हो। नरश्रेष्ठ परंतप युधिष्ठिर! साक्षात् त्रिपुरनाशक यशस्वी भगवान शिव तथा देवी पार्वती ने पधारकर स्कन्द के गले में विश्वकर्मा की बनायी हुई सोने की दिव्यमाला पहनायी। भगवान वृषध्वज (शिव) ने अत्यन्त प्रसन्न होकर स्कन्द का समादर किया। ब्राह्मण लोग अग्नि को रुद्र का स्वरूप बताते हैं, इसलिये स्कन्द भगवान रुद्र के ही पुत्र हैं। रुद्र ने जिस वीर्य का त्याग किया था, वही श्वेत पर्वत के रूप में परिणत हो गया। फिर कृत्तिकाओं ने अग्नि के वीर्य को श्वेत पर्वत पर पहुँचाया था। भगवान रुद्र के द्वारा गुणवानों में श्रेष्ठ कुमार कार्तिकेय का सम्मान होता देख सब देवता कहने लगे- 'ये रुद्र के ही पुत्र हैं। रुद्र ने अग्नि में प्रवेश करके इस शिशु को जन्म दिया है।' रुद्रस्वरूप अग्नि से उत्पन्न होने के कारण स्कन्द रुद्र के ही पुत्र कहलाये। भारत! सुरश्रेष्ठ स्कन्द का जन्म रुद्रस्वरुप अग्नि से, स्वाहा से तथा छ: स्त्रियों से हुआ था। इसलिये वे भगवान रुद्र के पुत्र हुए। अग्निनन्दन स्कन्द लाल रंग के दो स्वच्छ वस्त्र धारण किये कान्तिमान् एवं तेजस्वी शरीर से ऐसी शोभा पा रहे थे, मानो दो लाल बादलों के साथ भगवान अंशुमाली (सूर्य) सुशोभित हो रहे हों। अग्नि देव ने स्कन्द के लिये कुक्कुट के चिह्न से सुशोभित ऊँचा ध्वज प्रदान किया था, जो रथ पर अरुण प्रभा से प्रलयाग्नि के समान उद्भासित हो रहा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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