महाभारत वन पर्व अध्याय 216 श्लोक 35-37

षोडशाधिकद्विशततम (216) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: षोडशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 35-37 का हिन्दी अनुवाद


साधुश्रेष्‍ठ! पतिव्रता का माहात्‍म्‍य और धर्मव्‍याध के द्वारा ब्राह्मण से कही हुई माता-पिता सेवा आदि बातें बता दीं।

युधिष्ठिर बोले- ब्रह्मन्! आपने धर्म के विषय में यह अत्‍यन्‍त अद्भुत और उत्तम उपाख्‍यान सुनाया है।

मुनिवर! आप समस्‍त धर्मज्ञों में श्रेष्‍ठ हैं। विद्वन्! यह कथा सुनने में इतनी सुखद थी कि मेरा बहुत-सा समय भी दो घड़ी के समान बीत गया।

भगवन्! आपके मुख से यह धर्म की उत्तम कथा सुनते-सुनते मुझे तृप्ति ही नहीं हो रही है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेयसमस्‍यापर्व में ब्राह्मण व्‍याध संवाद विषयक दो सौ सोलहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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