पच्चाधिकद्विशततम (205) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
महाभारत: वन पर्व: पच्चाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 18-23 का हिन्दी अनुवाद
भारत! पिता और माता अपने पुत्रों के लिये यश, कीर्ति और संतान तथा धर्म की शुभकामना करते हैं। राजेन्द्र! जो उन दोनों की आशा को सफल करता है, वही पुत्र धर्मज्ञ है। जिसके माता-पिता उससे सदा संतुष्ट रहते हैं, उसे इहलोक और परलोक में अक्षय कीर्ति और शाश्वत धर्म की प्राप्ति होती है। नारी के लिये किसी यज्ञ कर्म, श्राद्ध और उपवास की आवश्यकता नहीं है। वह जो पति की सेवा करती है, उसी के द्वारा स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त कर लेती है। राजा युधिष्ठिर! इसी प्रकरण में पतिव्रताओं के नियत धर्म का वर्ण्न किया जायेगा। तुम सावधान होकर सुनो।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेयसमास्यापर्व में पतिव्रतो पाख्यान विषयक दो सौ पांचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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