द्वयधिकद्विशततमो (202) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
महाभारत: वन पर्व: द्वयधिकद्विशततमो अध्याय : श्लोक 22-31 का हिन्दी अनुवाद
जिस समय वह सांस लेता है, उस समय पर्वत, वन और काननों सहित यह सारी पृथ्वी डोलने लगती है। उसके सांस की आंधी से धूल का इतना ऊँचा बवंडर उठता है कि वह सूर्य के मार्ग को भी ढक लेता है और सात दिनों तक वहाँ भूकम्प होता रहता है। आग की चिनगारियां, ज्वालाएं और धुआं उठकर अत्यन्त भंयकर दृश्य उपस्थित करते हैं। राजन्! इस कारण मेरा अपने आश्रम में रहना कठिन हो गया है। सब लोगों के हित के लिये आप उस राक्षस को नष्ट कीजिये। उस असुर के मारे जाने पर सब लोग स्वस्थ एवं सुखी हो जायेंगे। मेरा विश्वास है कि आप अकेले ही उसका नाश करने के लिये पर्याप्त हैं। भूपाल! भगवान विष्णु अपने तेज से आपके तेज को बढ़ायेंगे। उन्होंने पूर्वकाल में मुझे यह वर दिया था कि जो राजा उस भयानक एवं महान् असुर का वध करने को उद्यत होगा, उस दुर्धर्ष वीर के भीतर मेरा वैष्णव तेज प्रवेश करेगा। महाराज! अत: आप भगवान का दु:सह तेज धारण करके पृथ्वी पर रहने वाले उस भयानक पराक्रमी दैत्य को नष्ट कीजिये। राजन्! धुन्धु महातेजस्वी असुर है। साधारण तेज से सौ वर्षों में भी कोई उसे नष्ट नहीं कर सकता।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेयसमास्यापर्व में धुन्धुमारोपाख्यान विषयक दो सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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