द्विचत्वारिंशदधिकशततम (142) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: द्विचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-58 का हिन्दी अनुवाद
पृथ्वी बोली- 'भगवन! आप ऐसी कृपा करें, जिससे मैं दीर्घ काल तक यहाँ स्थिर रह सकूं। इस समय मैं भार से इतनी दब गयी हूँ कि जीवन धारण नहीं कर सकती। भगवान! मेरे इस भार को आप दूर करने की कृपा करें। देव! मैं आपकी शरण मे आयी हूँ। विभो! मुझ पर कृपाप्रसाद कीजिये।' पृथ्वी का यह वचन सुनकर अविनाशी भगवान नारायण ने प्रसन्न होकर श्रवणमधुर अक्षरों से युक्त मीठी वाणी में कहा। भगवान विष्णु बोले- 'वसुधे! तू भार से पीड़ित है, किंतु अब उसके लिये भय न कर। मैं अभी ऐसा उपाय करता हूं, जिससे तू हल्की हो जायेगी।' लोमश जी कहते हैं- युधिष्ठिर! पर्वतरूपी कुण्डलों से विभूषित वसुधा देवी को विदा करके महातेजस्वी भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण कर लिया। उस समय उनके एक ही दांत था, जो पर्वत शिखर के समान सुशोभित होता था। वे अपने लाल-लाल नेत्रों से मानो भय उत्पन्न कर रहे थे। अपनी अंगकान्ति से धूम प्रकट करते हुए उस स्थान पर बढ़ने लगे। वीर युधिष्ठिर! अविनाशी विष्णु ने अपने एक ही तेजस्वी दांत के द्वारा पृथ्वी को थामकर उसे सौ योजन ऊपर उठा दिया। पृथ्वी को उठाते समय सब ओर भारी हलचल मच गयी। सम्पूर्ण देवता तथा तपस्वी ऋषि क्षुब्ध हो उठे। स्वर्ग, अन्तरिक्ष तथा भूलोक- सब में अत्यन्त हाहाकार मच गयी। कोई भी देवता या मनुष्य स्थिर नहीं रह सका। तब अनेक देवता और ऋषि ब्रह्माजी के समीप गये। उस समय वे अपने आसन पर बैठकर दिव्य कान्ति से प्रकाशित हो रहे थे। लोकसाक्षी देवेश्वर ब्रह्मा के निकट पहुँचकर सब ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा- ‘देवेश्वर! सम्पूर्ण लोकों में हलचल मच गयी है। चर और अचर सभी प्राणी व्याकुल हैं। समुद्रों में बड़ा भारी क्षोभ दिखायी दे रहा है। यह सारी पृथ्वी सैकड़ों येाजन नीचे चली गयी थी, अब यह किसके प्रभाव से कौन-सी अद्भुत घटना घटित हो रही है, जिससे सारा संसार व्याकुल हो उठा। आप शीघ्र हमें इसका कारण बताइये। हम सब लोग अचेत-से हो रहे हैं।' ब्रह्माजी ने कहा- 'देवताओ! तुम्हें असुरों से कभी और कोई भय नहीं है। यह जो चारों ओर क्षोभ फैल रहा है, इसका कारण है। वह सुनो। वे जो सर्वव्यापी अक्षरस्वरूप श्रीमान भगवान नारायण हैं, उन्हीं के प्रभाव से यह स्वर्गलोक में क्षोभ प्रकट हो रहा है। यह सारी पृथ्वी, जो सैकड़ों योजन नीचे चली गयी थी, इसे परमात्मा श्रीविष्णु ने पुन: ऊपर उठाया है। इस पृथ्वी का उद्धार करते समय ही सब ओर यह महान क्षोभ प्रकट हुआ है। इस प्रकार तुम्हें इस विश्वव्यापी हलचल का यथार्थ कारण ज्ञात होना और तुम्हारा आन्तरिक संशय दूर हो जाना चाहिये।' देवता बोले- 'भगवन! वे वराहरूपधारी भगवान प्रसन्न-से होकर कहाँ पृथ्वी का उद्धार कर रहे हैं, उस प्रदेश का पता हमें बताइये; हम सब लोग वहाँ जायेंगे।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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