सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 56-75 का हिन्दी अनुवाद
भारत! पाञ्चाल राजकुमार धृष्टद्युम्न ने धनुर्वेद में कुशल और समस्त विद्याओं के पारंगत विद्वान अपने गुरु द्रोणाचार्य को सहसा वहाँ आये देख आपके पुत्रों के वध की इच्छा छोड़ दी। फिर भीमसेन को केकय के रथ पर बिठाकर क्रोध में भरे हुए धृष्टद्युम्न ने अस्त्रविद्या के पारगामी विद्वान् द्रोणाचार्य पर धावा किया। तब शत्रुओं का नाश करने वाले प्रतापी द्रोणाचार्य ने कुपित होकर अपनी ओर आने वाले धृष्टद्युम्न के धनुष को एक बाण से तुरंत काट दिया। उसके बाद दुर्योधन के हित के लिये स्वामी के अन्न का विचार करते हुए धृष्टद्युम्न पर और भी सैकड़ों बाण चलाये। तत्पश्चात् शत्रुवीरों का हनन करने वाले धृष्टद्युम्न को दूसरा धनुष लेकर पत्थर पर रगड़कर तेज किये हुए सोने की पाँख वाले बीस बाणों से द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। तब शत्रुसूदन द्रोण ने पुनः धृष्टद्युम्न का धनुष काट दिया और चार उत्तम सायकों द्वारा उनके चारों घोड़ों को तुरंत ही भयानक यमलोक को भेज दिया। भारत! फिर एक भल्ल के द्वारा उनके सारथि को भी मृत्यु के हवाले कर दिया। घोड़ों और सारथि के मारे जाने पर महारथी महाबाहु धृष्टद्युम्न तुरंत उस रथ से कूद पड़े और अभिमन्यु के विशाल रथ पर आरूढ़ हो गये। तदनन्तर भीमसेन और धृष्टद्युम्न के देखते-देखते रथ, हाथी और घुड़सवारों सहित सारी पाण्डव सेना काँपने लगी। अमित तेजस्वी आचार्य द्रोण के द्वारा अपनी सेना का व्यूह भंग हुआ देख वे सम्पूर्ण महारथी प्रयत्न करने पर भी उसे रोकने में सफल न हो सके। द्रोणाचार्य के पैने बाणों से पीड़ित हुई वह सेना विक्षुब्ध महासागर के समान वही चक्कर काटने लगी। द्रोणाचार्य को अत्यन्त कुपित होकर शत्रुसेना पर टूटते और पाण्डव-सेना को भागते देख आपके सैनिकों को बड़ा हर्ष हुआ। भारत! आपके सभी योद्धा सब ओर से द्रोणाचार्य को साधुवाद देने लगे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में संकुल युद्ध में द्रोणपराक्रम विषयक सतहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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