महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 26 श्लोक 58-68

षड्-विंश (26) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 58-68 का हिन्दी अनुवाद
  • उस समय घबराये हुए आपके पुत्र युयुत्सु अभिमन्‍यु के रथ पर जा बैठे। हाथी की पीठ पर बैठे हुए राजा भगदत्‍त शत्रुओं पर बाण-वर्षा करते हुए सम्‍पूर्ण लोकों में अपनी किरणों का विस्‍तार करने वाले सूर्य के समान शोभा पा रहे थे। (58-59)
  • अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु ने बारह, युयुत्‍सु ने दस और द्रौपदी के पुत्रों तथा धृष्‍टकेतु ने तीन-तीन बाणों से भगदत्‍त के उस हाथी को घायल कर दिया। (60)
  • अत्‍यन्‍त प्रयत्‍नपूर्वक चलाये हुए उन बाणों से हाथी का सारा शरीर व्‍याप्‍त हो रहा था। उस अवस्‍था में वह सूर्य की किरणों में पिरोये हुए महामेघ के समान शोभा पा रहा था। (61)
  • महावत के कौशल और प्रयत्‍न से प्रेरित होकर वह हाथी शत्रुओं के बाणों से पीड़ित होने पर भी उन विपक्षियों को दायें-बायें उठाकर फेंकने लगा। (62)
  • जैसे ग्‍वाला जंगल में पशुओं को डंडे से हाँकता है, उसी प्रकार भगदत्‍त ने पांडव सेना को बार-बार घेर लिया। (63)
  • जैसे बाज पक्षी के चंगुल में फँसे हुए अथवा उसके आक्रमण से त्रस्‍त हुए कौओं में शीघ्र ही काँव-काँव का कोलाहल होने लगता है, उसी प्रकार भागते हुए पाण्‍डव-योद्धाओं का आर्तनाद जोर-जोर से सुनायी दे रहा था। (64)
  • नरेश्वर! उस समय विशाल अंकुश की मार खाकर वह गजराज पूर्वकाल के पंखधारी श्रेष्‍ठ पर्वत की भाँति शत्रुओं को उसी प्रकार अत्‍यन्‍त भयभीत करने लगा, जैसे विक्षुब्‍ध महासागर व्‍यापारियों को भय में डाल देता है। (65)
  • महाराज! तदनन्‍तर भय से भागते हुए हाथी, रथ, घोड़े तथा राजाओं ने वहाँ अत्‍यन्‍त भयंकर आर्तनाद फैला दिया। उनके उस भयंकर शब्‍द ने युद्धस्‍थल में पृथ्वी, आकाश, स्‍वर्ग तथा दिशा-विदिशाओं को सब ओर से आच्‍छादित कर दिया। (66)
  • उस गजराज के द्वारा राजा भगदत्‍त ने शत्रुओं की सेना में अच्‍छी तरह प्रवेश किया। जैसे पूर्वकाल में देवासुर-संग्राम के समय देवताओं द्वारा सुरक्षित देवसेना में विरोचन ने प्रवेश किया था। (67)
  • उस समय वहाँ बड़े जोर से वायु चलने लगी। आकाश में धूल छा गयी। उस धूल ने समस्‍त सैनिकों को ढक दिया। उस समय सब लोग चारों ओर दौड़ लगाने वाले उस एकमात्र हाथी को हाथियों के झुंड-सा मानने लगे। (68)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में भगदत्‍त का युद्धविषयक छब्‍बीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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