महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 201 श्लोक 39-56

एकाधिकद्विशततम (201) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: एकाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 39-56 का हिन्दी अनुवाद

संजय कहते हैं- राजन! तदनन्‍तर उस अस्त्र से मुक्‍त हुए महाधनुर्धर वीर श्रीकृष्‍ण और अर्जुन एक साथ दिखायी दिये, मानो आकाश में चन्‍द्रमा और सूर्य प्रकट हो गये हों। उस समय गाण्‍डीवधारी अर्जुन और भगवान श्रीकृष्‍ण दोनों के शरीर पर आँच नहीं आने पायी थी। पताका, ध्‍वज, अश्व, अनुकर्ष और श्रेष्‍ठ आयुधोंसहित मुक्‍त हुआ उनका वह रथ आपके सैनिकों को भयभीत करता हुआ चमक उठा। तब पाण्‍डव हर्ष से खिल उठे और क्षण भर में शंख तथा भेरियों की ध्‍वनि के साथ उनका आनन्‍दमय कोलाहल गूँज उठा। श्रीकृष्‍ण और अर्जुन के सम्‍बध में उन दोनों ही सेनाओं को यह विश्‍वास हो गया था कि वे मारे गये। फिर उन दोनों को एक साथ वेगपर्वूक निकट आया देख सबको बड़ी प्रसन्‍नता हुई। उन दोनों के शरीर में क्षति नहीं पहाँची थी। वे दोनों वीर आनन्‍दमग्‍न हो अपने उत्तम शंख बजाने लगे। कुन्‍ती के पुत्रों को प्रसन्‍न देखकर आपके पुत्रों के मन में बड़ी व्‍यथा हुई।

माननीय नरेश! महात्‍मा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन को आग्‍नेयास्त्र से मुक्‍त देख अश्वत्थामा को बड़ा दुःख हुआ। वह दो घड़ी तक इसी चिन्‍ता में डूबा रहा कि ‘यह क्‍या हो गया’। राजेन्‍द्र! चिन्‍ता और शोक में मग्‍न होकर कुछ देर तक विचार करने के पश्‍चात अश्वत्थामा गरम-गरम दीर्घ उच्‍छ्‌वास लेने लगा और मन ही मन उदास हो गया। तत्‍पश्‍चात द्रोणकुमार धनुष त्‍यागकर रथ से कूद पड़ा और ‘धिकार है! धिकार है!! यह सब मिथ्‍या है’ ऐसा कहकर वह रणभूमि से वेगपूर्वक भाग चला। इतने ही में उसे स्निग्ध मेघ के समान श्‍याम कान्तिवाले, वेद और सरस्वती के आवास स्‍थान तथा वेदों का विस्‍तार करने वाले, पापशून्‍य महर्षि व्यास वहाँ दिखायी दिये।

कुरुकुल के श्रेष्‍ठ पुरुष! महर्षि व्यास को सामने खड़ा देख द्रोणकुमार का गला आँसुओं से भर आया। उसने अत्‍यन्‍त दीनभाव से प्रणाम करके उनसे इस प्रकार पूछा। ‘महर्षे! यह माया है या दैवेच्‍छा। मेरी समझ में नहीं आता कि यह क्‍या है? यह अस्त्र झूठा कैसे हो गया? मुझसे कौन सी गलती हो गयी? ‘इस आग्‍नेय अस्त्र के प्रभाव में कोई उलट फेर तो नहीं हो गया अथवा सम्‍पूर्ण लोकों का पराभव होने वाला है, जिससे ये दोनों कृष्‍ण जीवित बच गये। निश्‍चय ही काल का उल्‍लंघन करना अत्‍यन्‍त कठिन है। ‘मेरे द्वारा प्रयोग किये हुए इस अस्त्र को असुर, गन्‍धर्व, पिशाच, राक्षस, सर्प, यक्ष, पक्षी और मनुष्‍य किसी तरह भी व्‍यर्थ नहीं कर सकते थे, तो भी यह प्रज्‍वलित अस्त्र केवल एक अक्षौहिणी सेना को जलाकर शान्‍त हो गया। ‘मैनें तो अत्‍यन्‍त भयंकर एवं सर्वसंहारक अस्त्र का प्रयोग किया था; फिर उसने किस कारण से इन मर्त्‍यधर्मा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन का वध नहीं किया। ‘भगवन! महामुने! मैंने जो आपसे यह प्रश्‍न किया है, इसका मुझे यथार्थ उत्‍तर दीजिये। मैं यह सब कुछ ठीक-ठीक सुनना चाहता हूँ। व्‍यास जी बोले—तू जिसके सम्‍बन्‍घ में आश्‍चर्य के साथ प्रश्‍न कर रहा है, उस महत्‍वपूर्ण विषय को मैं तुझ से बता रहा हूँ। तू अपने मन को एकाग्र करके सब कुछ सुन।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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