महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 153 श्लोक 16-36

त्रिपण्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व )

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महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिपण्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-36 का हिन्दी अनुवाद

महामनस्वी दुर्योधन की मार खाकर पांचाल सैनिक इधर-उधर भागने लगे। अब वे पलायन करने में ही उत्साह दिखा रहे थे। उनमें शत्रुओं को जीतने का उत्साह नहीं रह गया था। आपके धनुर्धर पुत्र के द्वारा चलाये हुए सुवर्णमय पंख तथा चमकती हुई धार वाले बाणों से पीड़ित होकर बहुतेरे पाण्डव सैनिक तुरंत धराशायी हो गये। प्रजानाथ! आपके सैनिकों ने रणभूमि में वैसा पराक्रम नहीं किया था, जैसा की आपके पुत्र राजा दुर्योधन ने किया। जैसे हाथी सब ओर से खिले हुए कमल पुष्पों से सुशोभित पोखरे को मथ डालता है, उसी प्रकार आपके पुत्र ने रणभूमि में पाण्डव-सेना को मथ डाला। जैसे हवा और सूर्य से पानी सूख जाने के कारण पद्मनी हतप्रभ हो जाती हैं, उसी प्रकार आपके पुत्र के तेज से तप्त होकर पाण्डव-सेना श्रीहीन हो गयी थी।

भारत! आपके पुत्र द्वारा पाण्डव सेना को मारी गयी देख पांचालों ने भीमसेन को अगुआ बनाकर उस पर आक्रमण किया। उस समय दुर्योधन ने भीमसेन को दस, माद्रीकुमारों को तीन-तीन, विराट और द्रुपद को छः-छः शिखण्डी को सौ, धृष्टद्युम्न को सत्तर, धर्मपुत्र युधिष्ठिर को सात और केकय तथा चेदिदेश के सैनिकों को बहुत-से तीखे बाण मारे। फिर सात्यकि को पांच बाणों से घायल करके द्रौपदी के पुत्रों को तीन-तीन बाण मारे। तत्पश्‍चात समरभूमि में [[घटोत्कच] को घायल करके दुर्योधन ने सिंह के समान गर्जना की। उस महायुद्ध में हाथियों सहित सैकड़ों दूसरे योद्धाओं को क्रोध में भरे हुए दुर्योधन ने अपने भयंकर बाणों द्वारा उसी प्रकार काट डाला, जैसे यमराज प्रजा का विनाश करते हैं। नरेश्‍वर! उस संग्राम में आपके पुत्र के चलाये हुए बाणों की मार खाकर पाण्डव-सेना इधर-उधर भागने लगी। राजन! उस महासमर में तपते हुए सूर्य के समान कुरुराज दुर्योधन की ओर पाण्डव सैनिक देख भी न सके।

नृपश्रेष्ठ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए राजा युधिष्ठिर आपके पुत्र कुरुराज दुर्योधन को मार डालने की इच्छा से उसकी ओर दौड़े। शत्रुओं का दमन करने वाले वे दोनों कुरूवंशी वीर दुर्योधन और युधिष्ठिर अपने-अपने स्वार्थ के लिये युद्ध में पराक्रम प्रकट करते हुए एक दूसरे से भिड़ गये। तब दुर्योधन ने कुपित होकर झुकी हुई गांठवाले दस बाणों द्वारा तुरंत ही युधिष्ठिर को घायल कर दिया और एक बाण से उनका ध्वज भी काट डाला। नरेश्‍वर! उन्होंने तीन बाणों द्वारा महात्मा पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिर के प्रिय सारथि इन्द्रसेन को उसके ललाट प्रदेश में चोट पहुँचायी। फिर दूसरे बाण से महारथी दुर्योधन ने राजा युधिष्ठिर का धनुष भी काट दिया और चार बाणों से उनके चारों घोड़ों को बींघ डाला। तब राजा युधिष्ठिर ने कुपित हो पलक मारते-मारते दूसरा धनुष हाथ में ले लिया और बड़े वेग से कुरुवंशी दुर्योधन को रोका। माननीय नरेश! ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने दो भल्ल मारकर शत्रुओं के संहार में लगे हुए दुर्योधन के सुवर्णमय पृष्ठ-वाले विशाल धनुष के तीन टुकड़े कर डाले। साथ ही, उन्होंने अच्छी तरह चलाये हुए दस पैने बाणों-से दुर्योधन को भी घायल कर दिया। वे सारे बाण दुर्योधन के मर्मस्थानों में लगकर उन्हें विदीर्ण करते हुए पृथ्वी में समा गये। फिर तो भागे हुए पाण्डव-योद्धा लौट आये और युधिष्ठिर को वैसे ही घेरकर खड़े हो गये, जैसे वृत्रासुर के वध के लिये सब देवता इन्द्र को घेरकर खड़े हुए थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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