महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 9 श्लोक 53-71

नवम (9) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 53-71 का हिन्दी अनुवाद

सिंह के समान वेगशाली पुरुषसिंह कर्ण जब अपना विशाल धनुष कँपाता हुआ युद्ध स्थल में दिव्यास्त्र तथा भयंकर बाण छोड़ रहा हो, उस समय उसे कौन जीत सकता था? निश्चय ही उसका धनुष कट गया होगा या रथ धरती में धँस गया होगा अथवा उसके अस्त्र नष्ट हो गये होंगे, तभी जैसा तुम मुझे बता रहे हो, वह मारा गया होगा। उसके नष्ट होने में और कोई कारण मुझे नहीं दिखायी देता है, जिस महामना वीर का यह भयंकर व्रत था कि ‘मैं जब तक अर्जुन को मार नहीं लूँगा, तब तक दूसरों से अपने पैर नहीं धुलवाऊँगा’।

रणभूमि में जिसके भय से डरे हुए पुरुष शिरोमणि धर्मराज युधिष्ठिर ने तेरह वर्षों तक कभी अच्छी नींद नहीं ली, जिस महामनस्वी बलवान सूत पुत्र के बल का भरोसा करके मेरा पुत्र दुर्योधन पाण्डवों की पत्नी को बलपूर्वक सभा में घसीट लाया और वहाँ भी भरी सभा में उसने पाण्डवों के देखते देखते समस्त कुरुवंशियों के समीप पांचाल राजकुमारी को दास पत्नी बतलाया, साथ ही जिसने उसे सम्बोधित करके कहा- ‘कृष्णे! तेरे पति अब नहीं के बराबर हैं। सुन्दरि! अब तू दूसरे किसी पति का आश्रय ले’ पूर्वकाल में जिस सूत पुत्र ने सभा में रोष पूर्वक द्रौपदी को ये कठोर बातें सुनायी थीं, वह स्वयं शत्रुओं द्वारा कैसे मारा गया? जिसने मेरे पुत्र से कहा था कि ‘दुर्योधन! यदि युद्ध की श्लाघा रखने वाले भीष्म अथवा रणदुर्मद द्रोणाचार्य पक्षपात करने के कारण कुन्ती पुत्रों को नहीं मारेंगे तो मैं उन सबको मार डालूँगा। तुम्हारी मानसिक चिंता दूर हो जानी चाहिये।। ‘गाण्डीव धनुष अथवा दोनों अक्षय तरकस मेरे उस बाण का क्या कर लेंगे, जो चिकने चन्दन से चर्चित हो शत्रुओं पर बड़े वेग से धावा करते हैं’ ऐसी बातें कहने वाला कर्ण, जिसके कंधे बैलों के समान हृष्ट-पुष्ट थे, निश्चय ही अर्जुन के हाथ से कैसे मारा गया?

संजय! जिसने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाणों के आघात की तनिक भी परवा न करके ‘कृष्णे! अब तू पतिहीना हो गयी’ ऐसा कहते हुए कुन्ती पुत्रों की ओर देखा था, जिसे अपने बाहुबल के भरोसे से कभी दो घड़ी के लिये भी पुत्रों सहित पाण्डवों और भगवान श्रीकृष्ण से भी भय नहीं हुआ। तात! यदि शत्रु पक्ष की ओर से इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता भी धावा करें तो उनके द्वारा भी कर्ण के वध होने का मुझे विश्वास नहीं हो सकता था, फिर पाण्डवों की तो बात ही क्या है?जब अधिरथ पुत्र कर्ण अपने धनुष की प्रत्यन्चा स्पर्श कर रहा हो अथवा दस्ताने पहने चुका हो, उस समय कोई पुरुष उसके सामने नहीं ठहर सकता था। सम्भव है यह पृथ्वी चन्द्रमा और सूर्य की प्रकाशमयी किरणों से वंचित हो जाय, परंतु युद्ध में पीठ न दिखाने वाले पुरुषशिरोमणि कर्ण के वध की कदापि सम्भावना नहीं थी। जिस कर्ण और भाई दुःशासन को अपना सहायक पाकर मूर्ख एवं दुर्बुद्धि दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा देना ही उचित समझा था, मैं समझता हूँ, आज बैलों के समान पुष्ट कंधे वाले कर्ण को गिरा हुआ तथा दुःशासन को भी मारा गया देख मेरा वह पुत्र निश्चय ही शोक में मग्न हो गया होगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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