महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 69 श्लोक 79-88

एकोनसप्ततितम (69) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व:एकोनसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 79-88 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण नित्‍य-निरन्‍तर युद्ध के लिये उद्यत और शत्रुओं के लिये असह्य है। आज रणभूमि में हार-जीत का जूआ कर्ण पर ही अवलम्बित है। कर्ण के मारे जाने पर अन्‍य कौरव शीघ्र ही परास्‍त हो सकते हैं। धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर के मन में ऐसा ही विचार काम कर रहा था। अर्जुन! इसलिये धर्मपुत्र युधिष्ठिर वध के योग्‍य नहीं हैं। इधर तुम्‍हें अपनी प्रतिज्ञा का पालन भी करना है। अत: जिस उपाय से ये जीवित रहते हुए भी मरे के समान हो जायं, वही तुम्‍हारे अनुरुप होगा। उसे बताता हूं, सुनो- इस जीवजगत में माननीय पुरुष जब तक सम्‍मान पाता है, तभी तक वह वास्‍तव में जीवित है। जब वह महान अपमान पाने लगता है, तब वह जीते-जी मरा हुआ कहलाता है। तुमने, भीमसेन ने, नकुल-सहदेव ने तथा अन्‍य वृद्ध पुरुषों एवं शूरवीरों ने जगत में राजा युधिष्ठिर का सदा सम्‍मान किया है; किंतु इस समय तुम उनका थोड़ा सा अपमान कर दो। पार्थ! तुम युधिष्ठिर को सदा आप कहते आये हो, आज उन्‍हें ‘तू’ कह दो। भारत! यदि किसी गुरुजन को ‘तू’ कह दिया जाय तो यह साधु पुरुषों की दृष्टि में उसका वध ही हो जाता है।

कुन्‍तीनन्‍दन! तुम धर्मराज युधिष्ठिर के प्रति ऐसा ही बर्ताव करो कुरुश्रेष्ठ! उनके लिये इस समय अधर्मयुक्त वाक्‍य का प्रयोग करो। जिसके देवता अथर्वा और अंगिरा हैं, ऐसी श्रुति है, जो सब श्रुतियों में उत्तम है। अपनी भलाई चाहने वाले मनुष्‍यों को सदा बिना विचारे ही इस श्रुति के अनुसार बर्ताव करना चाहिये। उस श्रुति का भाव यह है- ‘गुरु को तू कह देना उसे बिना मारे ही मार डालना है। तुम धर्मज्ञ हो तो भी जैसा मैंने बताया है, उसके अनुसार धर्मराज के लिये ‘तू’ शब्‍द का प्रयोग करो। पाण्‍डुनन्‍दन! तुम्‍हारे द्वारा किये गये इस अनुचित शब्‍द के प्रयोग को सुनकर ये धर्मराज अपना वध हुआ ही समझेंगे। इसके बाद तुम इनके चरणों में प्रणाम करके इन्‍हें सान्‍त्‍वना देते हुए क्षमा मांग लेना और इनके प्रति न्‍यायोचित वचन बोलना। कुन्‍तीनन्‍दन! तुम्‍हारे भाई राजा युधिष्ठिर समझदार हैं। ये धर्म का ख्‍याल करके भी तुम पर कभी क्रोध नहीं करेंगे। इस प्रकार साथ मिथ्‍याभाषण और भ्रातृ-वध के पाप से मुक्त हो बड़े हर्ष के साथ सूतपुत्र कर्ण का वध करना।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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