महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 59 श्लोक 26-50

एकोनषष्टितम (59) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 26-50 का हिन्दी अनुवाद

राजेन्द्र! वीर अश्वत्थामा ने द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न को सामने खड़ा देख क्रोध से लंबी सांस खींचते हुए उन पर आक्रमण किया। महाराज! वे दोनों एक दूसरे को देखते ही अत्यन्त क्रोध में भर गये। प्रजानाथ! फिर प्रतापी द्रोणपुत्र ने बड़ी उतावली के साथ अपने पास ही खड़े हुए धृष्टद्युम्न से कहा- ‘पांचाल कुल-कलंक! आज मैं तुझे मौत के मुंह में भेज दूंगा। तुम्हें पूर्वकाल में द्रोणाचार्य का वध करके जो पापकर्म किया है, वह एक अमंगलकारी कर्म की भाँति आज तुझे संताप देगा। ‘ओ मूर्ख! यदि तू अर्जुन से आरक्षित रहकर युद्धभूमि में खड़ा रहेगा, भाग नहीं जायगा तो अवश्य तुझे मार डालूंगा, यह मैं तुझसे सत्य कहता हूँ। अश्वत्थामा के ऐसा कहने पर प्रतापी धृष्टद्युम्न उसे इस प्रकार उत्तर दिया-‘अरे! तेरी इस बात का जवाब तुझे मेरी वही तलवार देगी, जिसने युद्धस्थल में विजय के लिये प्रयत्न करने वाले तेरे पिता को दिया था। ‘यदि मैंने नाम मात्र के ब्राह्मण द्रोणाचार्य को पहले मार डाला था, तो इस समय पराक्रम करके तुझे भी मैं कैसे नहीं मार डालूंगा।

महाराज! ऐसा कहकर अमर्षशील सेनापति द्रुपद कुमार ने अत्यन्त तीखे बाण से द्रोणपुत्र को बींध डाला। इससे अश्वत्थामा का क्रोध बहुत बढ़ गया। राजन! उसने झुकी हुई गांठवाले बाणों से युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न की सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित कर दिया। महाराज! उस समय सब ओर से बाणों द्वारा आच्छादित होने के कारण न तो आकाश दिखायी देता था, न दिशाएं दीखती थीं और न सहस्रों योद्धा ही दृष्टिगोचर होते थे। राजन! उसी प्रकार युद्ध में शोभा पाने वाले अश्वत्थामा को धृष्टद्युम्न ने भी कर्ण के देखते-देखते बाणों से ढक दिया। महाराज! सब ओर से दर्शनीय राधापुत्र कर्ण ने भी पाण्डवों सहित पांचालों, द्रौपदी के पांचों पुत्रों, युधामन्यु और महारथी सात्यकि को अकेले ही आगे बढ़ने से रोक दिया था। धृष्टद्युम्न ने समरांगण में अश्वत्थामा के धनुष को काट डाला। राजेन्द्र! तब वेगवान अश्वत्थामा ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर दूसरा धनुष और विषधर सर्पों के समान भयंकर बाण हाथ में लेकर उनके द्वारा पलक मारते-मारते धृष्टद्युम्न के धनुष, शक्ति, गदा, ध्वज, अश्व, सारथि एवं रथ को तहस-नहस कर दिया। धनुष कट जाने और घोड़ों तथा सारथि के मारे जाने पर रथहीन हुए धृष्टद्युम्न ने विशाल खण्ड और सौ चन्द्राकार चिह्नों से युक्त चमकती हुई ढाल हाथ में ले ली। राजेन्द्र! शीघ्रता पूर्वक हाथ चलाने वाले सुदृढ़ आयुध-धारी वीर महारथी अश्वत्थामा ने समरांगण में अनेक भल्लों द्वारा रथ से उतरने के पहले ही धृष्टद्युम्न की उस ढाल-तलवार को भी काट दिया। वह एक अद्भुत सी बात हुई। भरतश्रेष्ठा! यद्यपि धृष्टद्युम्न रथहीन हो गये थे, उनके घोड़े मारे जा चुके थे, धनुष कट गया था तथा वे बाणों से बारंबार घायल और अस्त्र शस्त्रों से जर्जर हो गये थे तो भी महारथी अश्वत्थामा लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें मार न सका।

राजन! जब वीर द्रोणकुमार अश्वत्‍थामा बाणों द्वारा धृष्टद्युम्न का वध न कर सका, तब वह धनुष फेंककर तुरंत ही उसकी की ओर दौड़ा। नरेश्वर! रथ से उछलकर दौड़ते हुए महामना अश्वत्थामा का वेग बहुत बड़े सर्प को पकड़ने के लिये झपटे हुए गरुड़ के समान प्रतीत हुआ। इसी समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-‘पार्थ वह देखो, द्रोणकुमार अश्वत्‍‍थामा धृष्टद्युम्नके वध के लिये कैसा महान प्रयत्न कर रहा है वह इन्हें मार सकता है, इसमें संशय नहीं है। ‘महाबाहो! शत्रुसूदन! जैसे कोई मौत के मुख में पड़ गया हो, उसी प्रकार अश्वत्थामा के मुख में पहुँचे हुए धृष्टद्युम्न को छुड़ाओ’। महाराज! ऐसा कहकर प्रतापी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने अपने घोड़ों को उसी ओर हांका, जहाँ द्रोणकुमार अश्वत्थामा खड़ा था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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