महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 69 श्लोक 16-21

एकोनसप्ततितम (69) अध्‍याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 16-21 का हिन्दी अनुवाद
  • धृतराष्‍ट्र बोले- वत्स संजय! तुम मुझे वह निर्भय मार्ग बताओ, जिससे चलकर मैं सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी परम मोक्षस्वरूप भगवान श्रीकृष्‍ण को प्राप्त कर सकूं। (16)
  • संजय ने कहा- महाराज! जिसने अपने मन को वश में नहीं किया है, वह कभी नित्यसिद्ध परमात्मा भगवान श्रीकृष्‍ण को नहीं पा सकता। अपनी सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में किये बिना दूसरा कोई कर्म उन परमात्मा की प्राप्ति का उपाय नहीं हो सकता। (17)
  • विषयों की ओर दौड़ने वाली इन्द्रियों की भोगकामनाओं का पूर्ण सावधानी के साथ त्याग कर देना, प्रमाद से दूर रहना तथा किसी भी प्राणी की हिंसा न करना- ये तीन निश्‍चय ही तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति में कारण हैं। (18)
  • राजन! आप आलस्य छोड़कर इन्द्रियों के संयम में तत्पर हो जाइये और अपनी बुद्धि को जैसे भी सम्भव हो, नियन्त्रण में रखिये, जिससे वह अपने लक्ष्‍य से भ्रष्‍ट न हो। (19)
  • इन्द्रियों को दृढ़तापूर्वक संयम में रखना चाहिये। विद्वान ब्राह्मण इसी को ज्ञान मानते हैं। यह ज्ञान ही वह मार्ग है, जिससे मनीषी पुरुष चलते हैं। (20)
  • राजन! मनुष्‍य अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त किये बिना भगवान श्रीकृष्‍ण को नहीं पा सकते। जिसने शास्त्रज्ञान और योग के प्रभाव से अपने मन और इन्द्रियों को वश में कर रखा है, वही तत्त्वज्ञान पाकर प्रसन्न होता है। (21)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत यानसंधिपर्व में संजयवाक्यविषयक उनहत्तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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