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महाभारत: उद्योग पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 19-29 का हिन्दी अनुवाद
- ‘यदि ये लोग अनायास ही मेरे शत्रुओं की रक्षा करने में समर्थ होते तो कुंती के पुत्र तेरह वर्षों तक कष्ट नहीं भोगते। (19)
- ‘पिताजी! मैं आपसे यह सत्य कहता हूँ कि देवता, गन्धर्व, असुर तथा राक्षस भी मेरे शत्रु की रक्षा करने में समर्थ नहीं है। (20)
- ‘मैं अपने मित्रों और शत्रुओं दोनों के विषय में शुभ या अशुभ जैसा भी चिंतन करता हूँ, वह पहले कभी निष्फल नहीं हुआ है। (21)
- ‘शत्रुओं को संताप देने वाले महाराज! मैं जो बात मुंह से कह देता हूँ कि यह इसी प्रकार होगा, मेरा वह कथन पहले कभी भी मिथ्या नहीं हुआ है। इसीलिये लोग मुझे सत्यवादी मानते हैं। (22)
- ‘राजन! मेरा यह माहात्म्य सब लोगों की आंखों के समक्ष है; सम्पूर्ण दिशाओं में प्रसिद्ध है। मैंने आपके आश्वासन के लिये ही इसकी यहाँ चर्चा की है, आत्मप्रशंसा करने के लिये नहीं। (23)
- ‘महाराज! आज से पहले मैंने कभी भी आत्मप्रशंसा नहीं की है; क्योंकि मनुष्य जो अपनी प्रशंसा करता है, यह अच्छे पुरुषों का कार्य नहीं है। (24)
- ‘आप किसी दिन सुनेंगे कि मैंने पाण्डवों को, मत्स्यदेश के योद्धाओं को, केकयों सहित पाञ्चालों को तथा सात्यकि और वसुदेवनंदन श्रीकृष्ण को भी जीत लिया है। (25)
- ‘जैसे नदियां समुद्र में मिलकर सब प्रकार से अपना अस्तित्व खो बैठती हैं, उसी प्रकार वे पाण्डव आदि योद्धा मेरे पास आने पर अपने कुल-परिवार सहित नष्ट हो जायंगे। (26)
- ‘मेरी बुद्धि उत्तम है, तेज उत्कृष्ट है, बल-पराक्रम महान है, विद्या बड़ी है तथा उद्योग भी सबसे बढ़कर है। ये सारी वस्तुएं पाण्डवों की अपेक्षा मुझमें अधिक हैं। (27)
- ‘पितामह भीष्म, आचार्य द्रोण, कृपाचार्य, शल्य तथा शल ये लोग अस्त्रविद्या के विषय में जो कुछ जानते हैं, वह सारा ज्ञान मुझमें विद्यमान है।' (28)
- शत्रुओं का दमन करने वाले जनमेजय! दुर्योधन के ऐसा कहने पर भरतनंदन धृतराष्ट्र ने युद्ध की इच्छा रखने वाले दुर्योधन के अभिप्राय को समझकर पुन: संजय से समयोचित प्रश्न किया। (29)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यांनसंधिपर्व में दुर्योधनवाक्य विषयक इकसठवां अध्याय पूरा हुआ।
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