त्रिषष्टितम (63) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 15-24 का हिन्दी अनुवाद
भारत! भीमसेन का यह कथन सुनकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए। अर्जुन आदि ने भी बहुत ठीक कहकर उन्हीं की बात का समर्थन किया। इस प्रकार समस्त पाण्डवों ने रत्न लाने का निश्चय करके ध्रुवसंज्ञक [1] नक्षत्र एवं दिन में सेना को यात्रा के लिए तैयार होने की आज्ञा दी। तदन्तर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर सुरश्रेष्ठ महेश्वर की पहले ही पूजा करके मिष्ठान्न, खीर, पूआ तथा फल के गूदों से उन महेश्वर को तृप्त करे उनका आशीर्वाद ले समस्त पाण्डवों ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक यात्रा आरम्भ की। जब वे यात्रा के लिये उद्यत हुए, उस समय श्रेष्ठ ब्राह्मणों और नागरिकों ने प्रसन्नचित्त होकर उनके लिये शुभ मंगल-पाठ किया। तत्पश्चात पाण्डवों ने अग्निसहित ब्राह्मणों की परिक्रमा करके उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वहाँ से प्रस्थान किया। प्रस्थान के पूर्व उन्होंने पुत्रशोक से व्याकुल राजा धृतराष्ट्र, गान्धारी देवी तथा विशाललोचना कुन्ती से आज्ञा ले ली थी। अपने कुल के मूलभुत धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती के समीप उनकी रक्षा के लिये कुरुवंशी धृतराष्ट्रपुत्र युयुत्सु को नियुक्त करके मनीषी ब्राह्मणों और पुरवासियों से पूजित होते हुए वीर पाण्डवों ने वहाँ से प्रस्थान किया। वे सब-के-सब उत्तम व्रत का पालन करते हुए शौच, संतोष आदि नियमों में दृढ़तापूर्वक स्थित थे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में द्रव्य लाने का उपक्रमविषयक तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तीनों उत्तरा तथा रोहिणी- ये ध्रुवसंज्ञक नक्षत्र हैं। दिनों में रविवार को ध्रुव बताया गया है। उत्तरा और रविवार का संयोग होने पर अमृतसिद्धि नामक योग होता है, अत: इसी योग में पाण्डवों के प्रस्थान करने का अनुमान किया जा सकता है।
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज