पंचपंचाशत्तम (55) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: पंचपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 13-29 का हिन्दी अनुवाद
उस समय बुद्धिमान उत्तंक ने अपने कठारे वचनों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण पर भी आक्षेप किया। उधर चाण्डाल बारंबार आग्रह करने लगा- ‘महर्षे! जल पी लीजिये’। उत्तंक ने उस जल को नहीं पीया। वे अत्यन्त कुपित हो उठे थे। उनके अन्त:करण में बड़ा क्षोभ था। उन महात्मा ने अपने निश्चय पर अटल रहकर चाण्डाल को जवाब दे दिया। महाराज! मुनि के इनकार करते ही कुत्तों सहित वह चाण्डाल वहीं अन्तर्धान हो गया। यह देख उत्तंक मन ही मन बहुत लज्जित हुए और सोचने लगे कि ‘शत्रुघाती श्रीकृष्ण ने मुझे ठग लिया’। तदनन्तर शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण उसी मार्ग से प्रकट होकर आये। उन्हें देखकर महामति उत्तंक ने कहा- ‘पुरुषोत्तम! प्रभो! आपको श्रेष्ठ ब्राह्मणों के लिये चाण्डाल से स्पर्श किया हुआ वैसा अपवित्र जल देना उचित नही है।’ उत्तंक के ऐसा कहने पर महाबुद्धिमान जनार्दन ने उन्हें मधुर वाणी द्वारा सान्त्वना देते हुए कहा- ‘महर्षे! वहाँ जैसा रूप धारण करके वह जल आपके लिये देना उचित था, उसी रूप से दिया गया, किंतु आप उसे समझ न सके। ‘भृगुनन्दन! मैंने आपके लिये व्रजधारी इन्द्र से जाकर कहा था कि तुम उत्तंक मुनि को जल के रूप में अमृत प्रदान करो। मेरी बात सुनकर प्रभावशाली देवेन्द्र ने बारम्बार मुझ से कहा कि ‘मनुष्य अमर नहीं हो सकता। इसलिये आप उन्हें अमृत न देकर और कोई वर दीजिये।’ परंतु मैंने शचीपति इन्द्र से जोर देकर कहा कि उत्तंक को अमृत ही देना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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