पंचत्वारिंश (45) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व:पंचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद
वह उस तपस्वी एवं मूढ़ जरत्कारु को जो तप को ही लाभ मानने वाला, मन्दात्मा (अदूरदर्शी) और अचेत (जड़) हो रहा है, धीरे-धीरे पीड़ा देते हुए दाँतों से काट रहा है। साधुशिरोमणे! उस जरत्कारु की तपस्या हमें इस संकट से नहीं उबारेगी। देखिये, हमारी जड़ें कट गयी हैं, काल ने हमारी चेतनाशक्ति नष्ट कर दी है और हम अपने स्थान से भ्रष्ट होकर नीचे इस गड्ढे में गिर रहे हैं। जैसे पापियों की दुर्गति होती है, वैसे ही हमारी होती है। हम समस्त बन्धु-बन्धुवों के साथ जब इस गड्ढे में गिर जायेंगे तब जरत्कारु भी काल का ग्रास बनकर अवश्य ही इसी नरक में आ गिरेगा। तात! तपस्या, यज्ञ अथवा अन्य जो महान एवं पवित्र साधन हैं, वे सब संतान के समान नहीं हैं। तात! आप तपस्या के धनी जान पड़ते हैं। आपको तपस्वी जरत्कारु मिल जाये तो उससे हमारा संदेश कहियेगा और आपने यहाँ जो कुछ देखा है, वह सब उसे बता दीजियेगा। ब्रह्मन! हमें सनाथ बनाने की दृष्टि से आप जरत्कारु के साथ इस प्रकार वार्तालाप कीजियेगा, जिससे वह पत्नी संग्रह करे और उसके द्वारा पुत्रों को जन्म दे। तात! जरत्कारु के बान्धव जो हम लोग हैं, हमारे लिये अपने कुल की भाँति अपने भाई-बन्धु के समान आप सोच कर रहे हैं। अतः साधुशिरोमणे! बताइयेे, आप कौन हैं? हम सब लोगों में से आप किसके क्या लगते हैं, जो यहाँ खडे़ हुए हैं? हम आपका परिचय सुनना चाहते हैं।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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