तृतीय (3) अध्याय: आदि पर्व (पौष्य पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 96-108 का हिन्दी अनुवाद
यह सुनकर पौष्य ने उत्तंक से कहा- ‘ब्रह्मन! आप अन्तःपुर में जाकर क्षत्राणी से वे कुण्डल माँग लें।’ किन्तु वहाँ उन्हें क्षत्राणी नहीं दिखायी दी। तब वे पुनः राजा पौष्य के पास आकर बोले- ‘राजन! आप मुझे सन्तुष्ट करने के लिये झूठी बात कहकर मेरे साथ छल करें, यह आपको शोभा नहीं देता है। आपके अन्तःपुर में क्षत्राणी नहीं हैं, क्योंकि वहाँ वे मुझे नहीं दिखायी देती हैं’। उत्तंक के ऐसा कहने पर पौष्य ने एक क्षण तक विचार करके उन्हें उत्तर दिया- ‘निश्चय ही आप झूठे मुँह हैं, स्मरण तो कीजिये, क्योंकि मेरे क्षत्राणी पतिव्रता होने के कारण उच्छिष्ट अपवित्र मनुष्य के द्वारा नहीं देखी जा सकती हैं। आप उच्छिष्ट होने के कारण अपवित्र हैं, इसलिये वे आपकी दृष्टि में नहीं आ रही हैं’। उनके ऐसा कहने पर उत्तंक ने स्मरण करके कहा ‘हाँ अवश्य ही मुझमें अशुद्धि रह गयी है। यहाँ की यात्रा करते समय मैंने खड़े होकर चलते-चलते आचमन किया है।’ तब पौष्य ने उनसे कहा- ‘ब्रह्मन! यहीं आपके द्वारा विधि का उल्लंघन हुआ है। खड़े होकर और शीघ्रतापूर्वक चलते-चलते किया हुआ आचमन नहीं के बराबर है। तत्पश्चात उत्तंक राजा से ‘ठीक है’ ऐसा कहकर हाथ, पैर और मूंछ भली-भाँति धोकर पूर्वाभिमुख हो आसन पर बैठे और हृदय तक पहुँचने योग्य शब्द तथा फेन से रहित शीतल जल के द्वारा तीन बार आचमन करके उन्होंने दो बार अँगूठे के मूल भाग से मुख पोंछा और नेत्र, नासिका आदि इन्द्रिय-गोलकों का जल सहित अंगुलियों द्वारा स्पर्श करके अन्तःपुर में प्रवेश किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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