चतुस्त्रिंश (34) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 20-26 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार महात्मा गरुड़ ने देवलोक से अमृत का अपहरण किया और सर्पों के समीप तक उसे पहुँचाया; साथ ही सर्पों को द्विजिह्व (दो जिह्वाओं से युक्त) बना दिया। उस दिन से सुन्दर पंख वाले गरुड़ अत्यन्त प्रसन्न हो अपनी माता के साथ रहकर वहाँ वन में इच्छानुसार घूमने फिरने लगे। वे सर्पों को खाते और पक्षियों से सादर सम्मानित होकर अपनी उज्ज्वल कीर्ति चारों ओर फैलाते हुए माता विनता को आनन्द देने लगे। जो मनुष्य इस कथा को श्रेष्ठ द्विजों की उत्तम गोष्ठी मे सदा पढ़ता अथवा सुनता है, वह पक्षिराज महात्मा गरुड़ के गुणों का गान करने से पुण्य का भागी होकर निश्चय ही स्वर्गलोक में जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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