अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: आदि पर्व (स्वयंवर पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-24 का हिन्दी अनुवाद
अश्विनी कुमारों के पुत्र नकुल और सहदेव रहे हैं- ऐसा मेरा अनुमान है, क्योंकि मैंने सुन रखा है कि उस लाक्षागृह के दाह से पाण्डव और कुन्ती देवी –सभी बचकर निकल गये थे’। राजालोग रण-भूमि में पाण्ड-पुत्र अर्जुन के प्रति अपना क्रोध जैसे प्रकट कर रहे थे, उसे सुनकर अर्जुन के बल को जानते हुए चक्रधारी पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण ने बलरामजी से कहा- ‘ भैया! आपको घबराना नहीं चाहिये। यदि बहुत से देवता और असुर एकत्र हो जायं, तो भी भीम के छोटे भाई कुन्तीकुमार अर्जुन उन सबके हाथ अकेले ही युद्ध करने में समर्थ हैं। फिर इन मानव-भूपालों पर विजय पाना कौन बड़ी बात है। यदि सव्यसाची अर्जुन हमारी सहायता लेना चाहेंगे तो हम इसके लिये प्रयत्न करेंगे। वीरवर! मेरा विश्वास है कि पाण्डुपुत्र अर्जुन की पराजय नहीं हो सकती’। जलहीन मेघ के समान गौरवर्ण वाले हलधर (बलराम जी) ने अपने छोटे भाई श्रीकृष्ण की बात पर विश्वास करके उनसे कहा-‘भैया! कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर पाण्डवों सहित अपनी बुआ कुन्ती को लाक्षागृह से बची हुर्इ देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई’। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्तर्गत स्वयंवर पर्व में श्रीकृष्णवाक्यविषयक एक सौ अट्ठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उर्ध्वविस्तृतदीर्मा ने तालमित्यमिधीयतं। इस वचन के अनुसार एक मनुष्य अपनी बांह को ऊपर उठाकर खड़ा हो तो उस हाथ से लेकर पैर की लंबाई को ‘ताल’ कहते हैं।
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