सप्तसप्तत्यधिकशततम (177) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
महाभारत: आदि पर्व:सप्तसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-29 का हिन्दी अनुवाद
तब वे अंधे होकर उस पर्वत के बीहढ़ स्थानों में भटकने लगे। फिर मोह के वशीभूत हो अपनी बुद्धि हो अपनी दृष्टि को खो देने वाले क्षत्रियों ने पुन: दृष्टि प्राप्त करने के लिये उसी सती-साध्वी ब्राह्मणी की शरण ली। वे क्षत्रिय उस समय आंख की ज्योति से वज्रित हो बुझी हुई लपटों वाली आग के समान अत्यन्त दु:ख से आतुर एवं अचेत हो रहे थे। अत: वे उस महान् सौभाग्यशालिनी देवी से इस प्रकार बोले- देवि! यदि आपकी कृपा हो तो नेत्र पाकर यह क्षत्रियों का दल अब लौट जायगा, थोड़ी देर विश्राम करके हम सभी पापाचारी यहाँ से साथ ही चले जायेंगे। शोभने! तुम अपने पुत्र के साथ हम सब पर प्रसन्न हो जाओ और पुन: नूतन द्दष्टि देकर हम सभी राजपुत्रों की रक्षा करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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