पंचाधिकशततम (105) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-32 का हिन्दी अनुवाद
महर्षि के आने पर उस दासी ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया और उन्हें प्रणाम करके उनकी आज्ञा मिलने पर वह शय्या पर बैठी और सत्कारपूर्वक उनकी सेवा पूजा करने लगी। एकान्त मिलन पर उस महर्षि व्यास बहुत संतुष्ट हुए। राजन! कठोर व्रत का पालन करने वाले महर्षि जब उसके साथ शयन करके उठे, तब इस प्रकार बोले- ‘शुभे! अब तू दासी नहीं रहेगी। तेरे उदर में एक अत्यन्त श्रेष्ठ बालक आया है। वह लोक में धर्मात्मा तथा समस्त बुद्धिमानों में श्रेष्ठ होगा’। वही बालक विदुर हुआ, जो श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास का पुत्र था। एक पिता का होने कारण वह राजा धृतराष्ट्र और महात्मा पाण्डु का भाई था। महात्मा माण्डव्य के शाप से साक्षात् धर्मराज ही विदुर रुप में उत्पन्न हुए थे। वे अर्थतत्त्व के ज्ञाता और काम-क्रोध से रहित थे। श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास ने सत्यवती को भी सब बातें बता दीं। उन्होंने यह रहस्य प्रकट कर दिया कि अम्बिका ने अपनी दासी को भेजकर मेरे साथ छल किया है, अत: शूद्रा दासी के गर्भ से ही पुत्र उत्पन्न होगा। इस तरह व्यास जी (मातृ-आज्ञा पालन रुप) धर्म से उऋण होकर फिर अपनी माता सत्यवती से मिले और उन्हें गर्भ का समाचार बताकर वहीं अन्तर्धान हो गये। विचित्रवीर्य के क्षेत्र में व्यास जी से ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए, जो देवकुमारों के समान तेजस्वी और कुरुवंश की वृद्धि करने वाले थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज