महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 78 श्लोक 17-25

अष्टसप्ततितम (78) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 17-25 का हिन्दी अनुवाद


गौओं के मूत्र और गोबर से किसी प्रकार उद्विग्न न हो, घृणा न करें और उनका मांस न खाएँ। इससे मनुष्य को पुष्टि प्राप्त होती है। प्रतिदिन गौओं का नाम लें। उनका कभी अपमान न करें। यदि बुरे स्वप्न दिखाई दें तो मनुष्य गोमाता का नाम ले। प्रतिदिन शरीर में गोबर लगाकर स्नान करें। सूखे हुए गोबर पर बैठें। उस पर थूक न फैंकें, मल-मूत्र न छोड़ें तथा गौओं के तिरस्कार से बचता रहे।

भीगे हुए गौचर्म पर बैठकर भोजन करें। पश्चिम दिशा की ओर देखें और मौन हो भूमि पर बैठकर घी का भक्षण करें। इससे सदा गौओं की वृद्धि एवं पुष्टि होती है। अग्नि में घृत से हवन करें। घृत से ही स्वस्तिवाचन करायें। घृत का दान करें और स्‍वयं भी गौ का घृत खायें। इससे मनुष्य सदा गौओं की पुष्टि-वृद्धि का अनुभव करता है।

जो मनुष्य सब प्रकार के रत्नों से युक्त तिल की धेनु को ‘गोमां अग्नेविमां अश्वि’ इत्यादि गोमती मंत्र से अभिमंत्रित करके उसका ब्राह्मण को दान करता है, वह किये हुए शुभाशुभ कर्म के लिये शोक नहीं करता। जैसे नदियाँ समुद्र के पास जाती हैं, उसी तरह सोने से मढ़ी हुई सींगों वाली, दूध देने वाली सुरभि और सौरभेयी गौएँ मेरे निकट आयें। मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौएँ मुझ पर कृपा-दृष्टि करें। गौएँ हमारी हैं और हम गौओं के हैं। जहाँ गौएँ रहें, वहीं हम रहें।

जो मनुष्य इस प्रकार रात में या दिन में सम अवस्था में या विषम अवस्था में तथा बड़े-से-बड़े भय आने पर भी गोमाता का नाम-कीर्तन करता है, वह भय से मुक्त हो जाता है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में गोदान विषयक अठहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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