महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-34

पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-34 का हिन्दी अनुवाद


श्रीमहेश्वर ने कहा- शोभने! तुम जो चाहती हो, उसे बता रहा हूँ। जीवात्मा सदा कर्म के अधीन होकर नाना प्रकार की योनियों में जन्म लेता है। जो प्रतिदिन मांस के लिये लालायित रहता है, वह कौओं और गीधों की योनि में जन्म लेता है। सदा शराब पीने वाला मनुष्य निश्चय ही सूअर होता है। अभक्ष्य भक्षण करने वाला मनुष्य कौए के कुल में उत्पन्न होता है तथा क्रोधपूर्वक आत्महत्या करने वाला पुरुष प्रेतयोनि में पड़ा रहता है।

दूसरों की चुगली और निन्दा करने से मुर्गे की योनि में जन्म लेना पड़ता है। जो मूर्ख नास्तिक होता है, वह मृग जाति में जन्म ग्रहण करता है। हिंसा या शिकार के लिये भ्रमण करने वाला मानव कीड़ों की योनि में जन्म लेता है। अत्यन्त अभिमानयुक्त पुरुष सदा मृत्यु के पश्चात गदहे की योनि में जन्म पाता है। अगम्या-गमन और परस्त्री सेवन करने से मनुष्य चूहा होता है, इसमें शंका करने की आवश्यकता नहीं है।

कृतघ्न और मित्रघाती मनुष्य सियार और भेड़ियों की योनि में जन्म लेता है। दूसरों के किये हुए उपहार को न मानने वाला और पुत्रघाती मनुष्य स्थावर योनि में जन्म लेता है। इत्यादि प्रकार के अशुभ कर्म करके मनुष्य नरकगामी होते हैं और अपनी ही करनी के कारण पूर्वोक्त भिन्न-भिन्न योनि में जन्म ग्रहण करते हैं। इसी तरह विभिन्न जातियों में जन्म लेने वाले पापाचारी प्राणियों का निर्देश करना चाहिये। ये किसी तरह उन योनियों से छूटकर जब पुनः जन्म लेते हैं, तब मनुष्य का पद पाते हैं।

जैसे लोहे को बार-बार आग में तपाने से वह शुद्ध होता है, उसी प्रकार बहुत दु:ख से संतप्त हुआ जीवात्मा बलात शुद्ध हो जाता है। अतः सभी जन्मों में मानव जन्म को अत्यन्त दुर्लभ समझो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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